Kanhaiyalal Mishra Ka Jeevan Parichay

(जीवनकाल सन् 1906 ई॰ से सन् 1995 ई॰)

स्वतन्त्रता संग्राम के आन्दोलन एवं साहित्य हेतु तन-मन-धन से समर्पित अनेक साधकों में श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' का विशिष्ट स्थान है। आपने पत्रकारिता के क्षेत्र में साधनारता रह कर से विशेष प्रतिष्ठा दिलायी। नवीन मानव-मूल्यों की स्थापना करके आपने हिन्दी साहित्य जगत् में विशिष्ट स्थान बनाया है। आपने हिन्दी में लघुकथा, संस्मरण, रेखाचित्र तथा रिपोर्ताज आदि विधाओं का प्रवर्तन किया है। आप जीवनपर्यन्त एक आदर्शवादी पत्रकार के रूप में प्रतिष्ठित रहे हैं।

जीवन परिचय- कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' जी का जन्म सन् 1906 ई॰ में हुआ था। आपके पिता श्री रामदत्त मिश्र पाण्डित्य कर्म करते थे। आप शान्त स्वभाव के सन्तोषी ब्राह्मण थे परन्तु आपकी माता का स्वभाव बड़ा ही कर्कश तथा उग्र था। आपके परिवार में शान्ति नहीं थी। इन्हीं कारणों के फलस्वरूप कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' जी की प्रारम्भिक शिक्षा सुचारु रूपेण नहीं हो पायी। आपने स्वाध्याय से ही हिन्दी, संस्कृत तथा ॲंग्रेजी आदि भाषाओं का गहन अध्ययन किया। बाद में आप खुर्जा के संस्कृत विद्यालय के विद्यार्थी बने तभी आपने राष्ट्रीय नेता मौलाना आसफअली का भाषण सुना, जिसका आप पर जादुई प्रभाव पड़ा कि आप परीक्षा त्यागकर स्वतन्त्रता के आन्दोलन में कूद पड़े। तब से आपने अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र-सेवा को समर्पित कर दिया। आप अनेक बार जेल भी गए।

आप निरन्तर भारत के राष्ट्रीय नेताओं के सम्पर्क में रहे। भारतीय स्वतन्त्रता का सपना लेकर आपने साहित्य-जगत में पदार्पण किया। तभी आपकी रुचि पत्रकारिता में हो गई।आपने पत्रकारिता के क्षेत्र में महान् मानवीय-आदर्शों की कल्पना की है। आपने स्वतन्त्रता-सेनानी जीवन के अनेक संस्मरण लिखे हैं। अन्याय के विरुद्ध क्रोध एवं पीड़ित मानवता के प्रति सुहृदयता और करुणा आपकी समस्त रचनाओं में दिखायी पड़ती है। आपने 'नया जीवन' तथा 'विकास' नामक पत्रों का भी सफल सम्पादन किया। इन पत्रों के माध्यम से तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक तथा शैक्षिक समस्याओं पर आपके निर्भीक आशावादी विचारों का परिचय प्राप्त होता है। 9 मई, सन् 1995 ई॰ में इनका स्वर्गवास हो गया।

कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' जी विचारों में उदार, राष्ट्रवादी और मानवतावादी हैं; अतः देश-प्रेम तथा मानवीय निष्ठा के अनेक रूप आपकी रचनाओं में प्राप्त होते हैं। आपने हिन्दी पत्रकारिता का मार्ग-दर्शन करते हुए निहित स्वार्थ त्यागकर समाज में उच्च-आदर्शों का प्रतिपादन किया। आपने हिन्दी को महान् विचार तथा नवीन शैली-शिल्प से सुसज्जित किया है। आपने संस्मरण, रेखाचित्र, यात्रा-वृत्तान्त, रिपोर्ताज आदि के रूप में साहित्य प्रदान किया है।

इनकी प्रमुख कृतियाॅं इस प्रकार हैं-

  1. धरती के फूल
  2. आकाश के तारे
  3. जिन्दगी मुस्कुराई
  4. भूले-बिसरे चेहरे
  5. दीपजले शंख बजे
  6. माटी हो गयी सोना
  7. महके ऑंगन चहके द्वार
  8. बाजे पायलिया के घुॅंघरू
  9. क्षण बोले कण मुस्काये।

भाषा-शैली

कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' की भाषा में अद्भुत प्रवाह विद्यमान है। आपके शब्द निर्माण में जगह-जगह चमत्कार है, वार्तालाप में विदग्धता है तथा परिस्थिति चित्रण में नाटकीयता है। आपके वाक्य-विन्यास में विविधता है, पात्र और परिस्थिति के साथ आपका विन्यास परिवर्तित होता जाता है। आपने भाषा के सहज एवं स्वाभाविक रूप को ग्रहण किया है। इस प्रवाह में आपकी भाषा में यत्र-तत्र ॲंग्रेजी तथा उर्दू के बोलचाल के शब्द आ गये हैं। शब्दों की चमत्कारपूर्ण प्रस्तुति, भावानुकूल वाक्य-विन्यास तथा विदग्धतापूर्ण उक्तियाॅं आपकी भाषा को अत्यन्त आकर्षक बनाती हैं। आपने शब्दों की लाक्षणिक शक्ति का प्रचुर प्रयोग किया है। आप साधारण शब्दों को भी एक नया अर्थ, नयी भंगिमा अधिकार-पूर्वक प्रदान करते हैं।

कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' जी की भाषा में मुहावरों एवं उक्तियों का सहज प्रयोग हुआ है। आलंकारिक भाषा से आपकी रचनाऍं कविता का जैसा सौन्दर्य प्राप्त कर गयी हैं। आपके वाक्य छोटे-छोटे एवं सुसंगठित हैं, जिनमें सूक्ति सम संक्षिप्तता एवं अर्थ गाम्भीर्य है। आपकी भाषा में व्यंग्यात्मकता, सरलता, मार्मिकता, चुटीलापन तथा भावाभिव्यक्ति क्षमता है।

कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' जी की शैली में भी हमें विविधता के दर्शन होते हैं। आपकी गद्य-शैली में भावों एवं विचारों के साथ-साथ विषय का सुन्दर विवेचन किया गया है।

आपके निबन्धों में शैली के विविध रूप देखने को मिलते हैं-

  1. भावात्मक शैली- यह आपकी प्रधान शैली है, आपकी अधिकांश रचनाऍं इसी शैली में ही लिखी गयी हैं। इस शैली में भाषा सुललित एवं वाक्य छोटे-छोटे हैं। इस गद्य शैली की भाषा सरल है।
  2. वर्णनात्मक शैली- आपके वर्णन सजीव और आकर्षक होते हैं। वर्णनात्मक प्रसंग में भाषा सरल तथा मिश्रित होती है किन्तु विदग्ध वाक्य-विन्यास उसमें आकर्षण पैदा कर देता है।
  3. विचारात्मक शैली- आपके निबन्धों में कोरी भावुकता नहीं है, विचारात्मकता भी है। गम्भीर से गम्भीर विषय को आप अपने अनुभव के आधार पर आसानी से अभिव्यक्त कर देते हैं।
  4. आलंकारिक शैली- काव्य को आलंकारिक भाषा के द्वारा प्रस्तुत करना आपकी शैली की मुख्य विशेषता है।
  5. नाटकीय शैली- आपकी अनेक रचनाओं में नाटकीय शैली के दर्शन होते हैं।

कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' हिन्दी साहित्य की निबन्ध विधा के स्तम्भ हैं। आपनी अद्वितीय भाषा-शैली के कारण आपका गद्यकारों में विशिष्ट स्थान है। हिन्दी साहित्य आपके इस महान् कृतित्व के लिए आपका ऋणी रहेगा।

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