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Showing posts from May, 2021

Tulsidas Ka Jivan Parichay

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( जीवनकाल सन् 1532 ई॰ से सन् 1623 ई॰ ) जीवन परिचय - भारतीय संस्कृति के उन्नायक तथा रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म सन् 1532 ई॰ (वि. सम्वत् 1589) में राजापुर (बाॅंदा जिला) के सरयूपारीण ब्राह्मण-कुल में उत्पन्न हुए थे। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। जन्म के कुछ दिनों बाद ही माता की मृत्यु हो जाने पर अभुक्त मूल नक्षत्र में उत्पन्न होने के कारण पिता ने इनका त्याग कर दिया। इसी दशा में इनकी भेंट रामानन्दीय सम्प्रदाय के साधु नरहरिदास से हुई, जिन्होंने इनको साथ लेकर विभिन्न तीर्थों का भ्रमण किया- बन्दौ गुरुपद कंज, कृपासिन्धु नर-रूप-हरि। कुछ समय के पश्चात् तुलसीदास स्वामी जी के साथ काशी आ गए, जहाॅं परम विद्वान् महात्मा शेषसनातन जी ने इन्हें वेद-वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि में निष्णात (प्रवीण) कर दिया। तुलसीदास का विवाह रत्नावली से हुआ, जिनके रूप पर ये अत्यधिक आसक्त थे। पत्नी के एक व्यंग्य से आहत होकर ये संन्यासी हो गए और काशी आ गए। लगभग 20 वर्षों तक इन्होंने समस्त भारत का भ्रमण किया और ये कभी अयोध्या, कभी चित्रकूट और कभी काशी में निव

Acharya Ramchandra Shukla Jivan Parichay

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( जीवनकाल सन् 1884 ई॰ से सन् 1941 ई॰ ) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी भाषा के उच्चकोटि के निबन्धकार एवं समालोचक के रूप में सुविख्यात हैं। ये एक सहृदय कवि, निष्पक्ष इतिहासकार, सफल अनुवादक और महान् शैलीकार थे। इन्होंने हिन्दी भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में अनेक नवीनताओं का समावेश किया। हिन्दी भाषा के समर्थ साहित्यकार के रूप में आचार्य शुक्ल का स्थान सर्वोपरि है। हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार गुलाबराय ने हिन्दी साहित्य में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का स्थान निर्धारित करते हुए लिखा है, "यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है कि गद्य साहित्य की और विशेषतः निबन्ध साहित्य की प्रतिष्ठा बढ़ाने में शुक्लजी अद्वितीय हैं। उपन्यास साहित्य में जो स्थान मुंशी प्रेमचन्दजी का है, वही स्थान निबन्ध साहित्य में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का है।" जीवन परिचय - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म सन् 1884 ई॰ में बस्ती जिले के अगोना नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम चन्द्रबली शुक्ल था। एफ॰ ए॰ (इण्टरमीडिएट) में आने पर इनकी शिक्षा बीच में छूट गई। इन्होंने सरकारी नौकरी कर ली; किन्तु स्वाभिमान के कारण सरकारी नौक

Vishnu Prabhakar Ka Jivan Parichay

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( जीवनकाल सन् 1912 ई॰ से सन् 2009 ई॰ ) जीवन परिचय - विष्णु प्रभाकर का जन्म 21 जून, सन् 1912 ई॰ को उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फ़रनगर जनपद के मीरापुर नामक ग्राम (अब नगरी अर्थात् क़स्बा) में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाॅंव में ही हुई थी। पारिवारिक कारणों से इन्हें हिसार (हरियाणा) जाना पड़ा। वहीं से आपने हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त की। आपने पंजाब विश्वविद्यालय से बी॰ ए॰ कर हिन्दी प्रभाकर की शिक्षा उत्तीर्ण की। इस परीक्षा के कारण आप प्रभाकर हो गये। उच्च शिक्षा के बाद आपने हिसार में सरकारी सेवाऍं प्रारम्भ कीं और साथ-ही-साथ लेखन में संलग्न रहे। प्रारम्भ में आपने कहानियाॅं लिखीं। आप दिल्ली में भी विभिन्न संस्थाओं के महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे। हिसार में आपका नाटक कम्पनियों से सम्पर्क हुआ, जिनमें आपने अभिनय भी किया। सन् 1938 ई॰ में आपका एकांकी भी प्रकाशित हुआ। आप दिल्ली आकाशवाणी केन्द्र पर ड्रामा प्रोड्यूसर और 'बाल भारती' के सम्पादक भी रह चुके हैं। एकांकी विशेषांक पढ़कर आपने मित्रों द्वारा प्रेरणा पाकर सन् 1939 ई॰ में 'हत्या के बाद' एकांकी भी लिखा। 11 अप्रैल, सन् 2009 ई॰ को

Acharya Mahavir Prasad Dwivedi Jeevan Parichay

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  ( जीवनकाल सन् 1864 ई॰ से सन् 1938 ई॰ ) जीवन परिचय - हिन्दी भाषा के परिष्कारक, उत्कृष्ट निबन्धकार, आदर्श सम्पादक एवं प्रखर आलोचक आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1864 ई॰ में रायबरेली जिले के दौलतपुर ग्राम में हुआ था। स्कूली शिक्षा समाप्त कर इन्होंने जी.आर.पी. रेलवे में नौकरी कर ली। रेलवे विभाग में नौकरी करते हुए इन्होंने घर पर ही संस्कृत, अंग्रेजी, हिन्दी, मराठी, बंगला और उर्दू भाषाओं का ज्ञान स्वाध्याय से प्राप्त किया। रेलवे तार विभाग में कुछ समय नौकरी करने के उपरान्त सन् 1903 ई॰ में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और साहित्य सेवा को समर्पित हो गए। सन् 1903 ई॰ से सन् 1920 ई॰ तक इन्होंने बड़ी कुशलतापूर्वक 'सरस्वती' नामक पत्रिका का सम्पादन किया। इनकी हिन्दी सेवाओं से प्रभावित होकर इनको काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने 'आचार्य' की उपाधि से सम्मानित किया। सन् 1938 ई॰ में इनका स्वर्गवास हो गया। साहित्यिक योगदान युग-प्रवर्तक आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने भारतेन्दु युग की भाषागत त्रुटियों को दूर करके हिन्दी भाषा एवं उसकी शैली को परिमार्जित किया। उन्होंने सबसे महत्त्

Bharatendu Harishchandra Ka Jivan Parichay

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( जीवनकाल सन् 1850 ई॰ से सन् 1885 ई॰ ) जीवन परिचय - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आधुनिक हिन्दी साहित्य के जनक माने जाते हैं। भारतेन्दु जी का जन्म सन् 1850 ई॰ में काशी में हुआ था। आपके पिता बाबू गोपालचन्द्र 'गिरधरदास' के उपनाम से कविता करते थे। पुत्र पिता से एक कदम आगे ही रहता है, इस उक्ति को चरितार्थ करते हुए भारतेन्दु जी ने 5 वर्ष की अल्पायु में ही काव्य-रचना कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। बाल्यावस्था में ही माता-पिता की छत्रछाया सिर से उठ जाने के कारण आपको उनकी वात्सल्यमयी छाया से वंचित रहना पड़ा; अतः आपकी शिक्षा सुचारु रूप से न चल सकी। घर पर ही स्वाध्याय से ही आपने हिन्दी, ॲंग्रेजी, संस्कृत, फारसी, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं का गहन ज्ञान प्राप्त किया। 13 वर्ष की अल्पायु में आपका विवाह मन्नोदेवी के साथ हुआ। भारतेन्दु जी की रुचि साहित्यिक एवं सामाजिक कार्यों में बहुत थी। साहित्य और समाज की सेवा में आप तन-मन-धन से समर्पित थे। फलस्वरूप आपके ऊपर बहुत ऋण चढ़ गया। ऋण की चिन्ता से आपका शरीर क्षीण हो गया और सन् 1885 ई॰ में 35 वर्ष की अल्पायु में ही इनका स्वर्गवास हो गया। भारतेन्दु हरिश्च

Maithili Sharan Gupt Ka Jeevan Parichay

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  ( जीवनकाल सन् 1886 ई॰ सन् 1964 ई॰ ) जीवन परिचय - मैथिलीशरण गुप्त का जन्म झाॅंसी जिले के चिरगाॅंव में सन् 1886 ई॰ में हुआ था। इनके पिता सेठ रामचरण गुप्त परम वैष्णव एवं काव्यरसिक थे। काव्य-रचना की ओर बाल्यावस्था से ही गुप्त जी का झुकाव था। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से इन्होंने हिन्दी काव्य की नवीन धारा को पुष्ट कर उसमें अपना विशेष स्थान बना लिया था। इनकी कविता में देश-भक्ति एवं राष्ट्र-प्रेम की व्यंजना प्रमुख होने के कारण इन्हें हिन्दी-संसार ने 'राष्ट्र-कवि' का सम्मान दिया। महात्मा गांधी से प्रभावित होकर आप स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़े तथा परिणामतः आपको जेल यात्राऍं भी करनी पड़ीं। आपकी साहित्यिक सेवाओं के कारण आगरा एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा आपको डी-लिट्॰ की उपाधि से विभूषित किया गया। 'साकेत' महाकाव्य पर आपको मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी प्राप्त हुआ। राष्ट्रपति ने इन्हें संसद-सदस्य मनोनीत किया। 12 दिसम्बर, सन् 1964 ई॰ में इनका स्वर्गवास हो गया। कृतित्व एवं व्यक्तित्व - गुप्त जी की रचना-सम्पदा विशाल है। इनकी विशेष ख्याति रामचरित पर आधारित महाकाव्य

Hazari Prasad Dwivedi Ka Jeevan Parichay

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( जीवनकाल सन् 1907 ई॰ से सन् 1979 ई॰ ) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हिन्दी साहित्य के सम्मानीय एवं प्रौढ़ साहित्यकार हैं। भारतीय साहित्य, संस्कृति तथा दर्शन के आप कुशल ज्ञाता हैं, महान् विचारक और कुशल वक्ता हैं, उच्च कोटि के समीक्षक एवं मौलिक निबन्धकार हैं। आप हिन्दी साहित्याकाश के जगमगाते हुए नक्षत्र हैं। आपने हिन्दी की ललित-निबन्ध परम्परा को अतिसमृद्धिशाली बनाया तथा हिन्दी समीक्षा को एक नयी उदार और मनोवैज्ञानिक दृष्टि दी। जीवन परिचय - आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का जन्म बलिया जिले के 'दुबे का छपरा' नामक ग्राम के एक विद्वान् ब्राह्मण परिवार में सन् 1907 ई॰ में हुआ था। आपके पिता पं॰ अनमोल दुबे संस्कृत एवं ज्योतिष के प्रकाण्ड ज्ञाता थे। आपका परिवार विद्वद्-परम्परा से विभूषित था। आपने विद्वता उत्तराधिकार में प्राप्त की तथा उसे अपनी प्रतिभा से गौरवान्वित किया। द्विवेदी जी ने काशी विश्वविद्यालय से ज्योतिषाचार्य एवं साहित्याचार्य की परीक्षाऍं उत्तीर्ण कीं। सन् 1940 ई॰ में आप शान्ति निकेतन में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त हुए। वहाॅं दीर्घकाल तक आप अपनी सेवाऍं प्

Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay

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( जीवनकाल सन् 1908 ई॰ से सन् 1974 ई॰ ) सुप्रसिद्ध कवि दिनकरजी हिन्दी के समर्थ राष्ट्रीय कवि, मनीषी, विचारक, सुधी समीक्षक और श्रेष्ठ निबन्धकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं। एक साधारण किसान परिवार में जन्म लेकर भी इन्होंने असाधारण प्रतिभा का परिचय दिया।इनके द्वारा अनेक ऐसे ग्रन्थों की रचना हुई, जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। डॉ॰ राजेश्वरप्रसाद चतुर्वेदी ने दिनकरजी के सन्दर्भ में लिखा है- "दिनकरजी युग प्रतिनिधि साहित्यकार हैं। उनकी भाषा में ओज और भावों में क्रान्ति की ज्वाला है। उनकी प्रत्येक पंक्ति में भारतीय संस्कृति और सभ्यता का उद्वेलन है। उनमें जन-जीवन के जागरण का स्वर है।" जीवन परिचय - रामधारीसिंह 'दिनकर' का जन्म सन् 1908 ई॰ में बिहार के मुंगेर जिले के अन्तर्गत सिमरिया-घाट नामक ग्राम में हुआ था। इन्होंने मोकामा-घाट से मैट्रिक तथा 'पटना विश्वविद्यालय' से बी॰ ए॰ (ऑनर्स) किया। बाल्यावस्था में ही इन्होंने अपनी साहित्य-सृजन की प्रतिभा का परिचय दे दिया था। जब ये मिडिल कक्षा में पढ़ते थे, तभी इन्होंने 'वीरबाला' नामक काव्य लिख लिया था। मैट्रिक में

Sachidanand Hiranand Vatsyayan Agay Ka Jeevan Parichay

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  ( जीवनकाल सन् 1911 ई॰ से सन् 1987 ई॰ ) प्रयोगवाद के प्रवर्त्तक एवं समर्थ साहित्यकार श्री सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' हिन्दी साहित्य में बहुमुखी प्रतिभा के धनी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। आपने आधुनिक हिन्दी गद्य क्षेत्र में भी हिन्दी काव्य की भाॅंति नवीन प्रयोगों से अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है।आपका उपनाम 'अज्ञेय' उचित ही है। जीवन परिचय - सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' का जन्म सन् 1911 ई॰ में लाहौर के कर्त्तारपुर नामक ग्राम में प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता श्री हीरानन्द शास्त्री के घर में हुआ था। बाल्यावस्था से ही अपने पिता के साथ पुरातत्वीय खोजों में लिप्त रहने के कारण आप परिवार से विच्छिन्न बने रहते थे। यही कारण है कि आप एकान्त के सहज अभ्यासी हो गए। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही संस्कृत शिक्षा के साथ आरम्भ हुई। तदुपरान्त आपने फारसी और ॲंग्रेजी का गहन अध्ययन भी घर पर ही किया। मद्रास तथा लाहौर से आपने उच्च शिक्षा प्राप्त की। विज्ञान स्नातक होने के बाद जब आप एम॰ ए॰ ॲंग्रेजी कर रहे थे तभी क्रान्तिकारी षड्यन्त्रों में भाग लेने के कारण आप

Kanhaiyalal Mishra Ka Jeevan Parichay

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( जीवनकाल सन् 1906 ई॰ से सन् 1995 ई॰ ) स्वतन्त्रता संग्राम के आन्दोलन एवं साहित्य हेतु तन-मन-धन से समर्पित अनेक साधकों में श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' का विशिष्ट स्थान है। आपने पत्रकारिता के क्षेत्र में साधनारता रह कर से विशेष प्रतिष्ठा दिलायी। नवीन मानव-मूल्यों की स्थापना करके आपने हिन्दी साहित्य जगत् में विशिष्ट स्थान बनाया है। आपने हिन्दी में लघुकथा, संस्मरण, रेखाचित्र तथा रिपोर्ताज आदि विधाओं का प्रवर्तन किया है। आप जीवनपर्यन्त एक आदर्शवादी पत्रकार के रूप में प्रतिष्ठित रहे हैं। जीवन परिचय - कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' जी का जन्म सन् 1906 ई॰ में हुआ था। आपके पिता श्री रामदत्त मिश्र पाण्डित्य कर्म करते थे। आप शान्त स्वभाव के सन्तोषी ब्राह्मण थे परन्तु आपकी माता का स्वभाव बड़ा ही कर्कश तथा उग्र था। आपके परिवार में शान्ति नहीं थी। इन्हीं कारणों के फलस्वरूप कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' जी की प्रारम्भिक शिक्षा सुचारु रूपेण नहीं हो पायी। आपने स्वाध्याय से ही हिन्दी, संस्कृत तथा ॲंग्रेजी आदि भाषाओं का गहन अध्ययन किया। बाद में आप खुर्जा के संस्कृत विद्यालय के

Jaishankar Prasad Ka Jivan Parichay

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  ( जीवनकाल सन् 1890 ई॰ से सन् 1937 ई॰ ) जयशंकरप्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और निबन्ध आदि सभी क्षेत्रों में इनकी प्रतिभा के दर्शन होते हैं। निरन्तर दुःख और चिन्ताओं से जूझते हुए ये इस संसार से विदा हो गए, परन्तु इन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिन्दी-साहित्य-जगत् को सदैव के लिए आलोकित कर दिया। सुविख्यात साहित्यकार रमेशचन्द्र शाह ने जयशंकरप्रसाद के सम्बन्ध में लिखा है, "प्रसाद का दर्शन भारतीय इतिहास प्रवाह में अर्जित, गॅंवाई गई और फिर से प्राप्त नैतिक व सौन्दर्यात्मक तथा व्यावहारिक व रहस्यात्मक अन्तर्दृष्टियों का समन्वय करने का साहित्यिक प्रयास है। उनका सम्पूर्ण कथा-साहित्य एवं नाट्यसाहित्य गहरे मनोवैज्ञानिक यथार्थवाद की नींव पर खड़ा है।" जीवन परिचय - प्रसादजी का जन्म काशी के 'सुॅंघनी साहू' नाम के प्रसिद्ध वैश्य परिवार में सन् 1890 ई॰ में हुआ था। प्रसादजी के पितामह का नाम शिवरत्न साहू और पिता का नाम देवीप्रसाद था। प्रसादजी के पितामह शिव के परमभक्त और दयालु थे। इनके पिता भी अत्यधिक उदार और साहित्य-प्रेमी थे। प्रसादजी का बाल्यकाल स

Mohan Rakesh Ka Jivan Parichay

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  ( जीवनकाल सन् 1925 ई॰ से सन् 1972 ई॰ ) मोहन राकेश आधुनिक नाटक साहित्य को नयी दिशा की ओर मोड़ने वाले प्रतिभासम्पन्न साहित्यकार हैं। आपने हिन्दी गद्य साहित्य को आधुनिक परिवेश के साथ जोड़कर आज के जीवन की संवेदनाओं का यथार्थ चित्रण किया है। नाटककार के रूप में तो आप अद्वितीय हैं ही, नई कहानी के संस्थापकों में भी आपका महत्त्वपूर्ण स्थान है। नाटकों को आपने एक नई दृष्टि प्रदान की है। जीवन परिचय - मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी, सन् 1925 ई॰ में पंजाब के अमृतसर शहर में हुआ था। आपके पिता श्री करमचन्द्र गुगलानी वकील थे, परन्तु आपकी रुचि साहित्य और संगीत में थी। मोहन राकेश ने लाहौर के ओरियंटल कॉलेज से शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण कर हिन्दी और संस्कृत विषय में एम॰ ए॰ किया। शिक्षा समाप्ति के बाद आपने अध्यापन का कार्यभार सॅंभाला। आपने बम्बई, शिमला, जालंधर तथा दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन किया, परन्तु अध्यापन में विशेष रूचि न होने के कारण आपने सन् 1962-1963   ई॰ में मासिक पत्रिका 'सारिका' का सम्पादन भी किया। कुछ समय पश्चात् इस कार्य को भी छोड़कर आपने स्वतन्त्र लेखन का कार्य प्रारम्भ किया।

Rambriksh Benipuri Ka Jeevan Parichay

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  ( जीवनकाल सन् 1902 ई॰ से सन् 1968 ई॰ ) रामवृक्ष बेनीपुरी की गणना हिन्दी साहित्य के महान् लेखकों में की जाती है। आपका लिखा गया प्रत्येक शब्द व वाक्य क्रान्ति के क्षेत्र में एक नवीन मार्ग प्रशस्त करता है। आप बहुमुखी प्रतिभा से मण्डित थे। रेखाचित्र को महत्त्वपूर्ण स्थान देने का श्रेय आपको ही है। समाजसेवी एवं राजनीतिज्ञ के नाते आपने जो कुछ लिखा है, वह स्वतन्त्र भाव से लिखा है। जीवन परिचय - रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर नामक ग्राम में जनवरी, सन् 1902 ई॰ में हुआ था। आपके पिता श्री फूलवन्तसिंह एक साधारण किसान थे। बाल्यावस्था में ही आपके माता-पिता की छत्र-छाया आपके सिर से उठ गई थी तथा आपका लालन-पालन आपकी मौसी ने किया था। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा बेनीपुर में ही हुई थी बाद में अपनी ननिहाल में भी पढ़े। मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने से पूर्व ही सन् 1920 ई॰ में आपने पढ़ाई छोड़ दी और गांधी जी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। मात्र 18 वर्ष की आयु में आप स्वतन्त्रता सैनिक बन गये। स्वाध्याय के बल पर ही आपने हिन्दी साहित्य की 'व

Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay

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  ( जीवनकाल सन् 1900 ई॰ से सन् 1977 ई॰ ) प्रकृति के सुकुमार कवि पन्तजी का काव्य उस झरने के समान है, जो अपनी लय और ताल में पहाड़ों की ऊॅंचाई से धरती की गोद में आता है और फिर उसकी ही चेतना का अंग बन जाता है। पन्तजी का सम्पूर्ण काव्य आधुनिक साहित्य-चेतना का प्रतीक है। उसमें धर्म भी है, दर्शन भी; सामाजिक जीवन का चित्रण भी है, नैतिकता का पहलू भी; भौतिकता भी है, आध्यात्मिकता भी; सुकुमार प्रकृति भी है और उद्दण्ड प्रकृति भी। वास्तव में इनका काव्य काव्य-रसिकों के कण्ठ का हार है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने सुमित्रानन्दन 'पन्त' के सन्दर्भ में लिखा है, "पन्त केवल शब्दशिल्पी ही नहीं, महान् भाव-शिल्पी भी हैं और सौन्दर्य के निरन्तर निखरते सूक्ष्म रूप को वाणी देनेवाले, एक सम्पूर्ण युग को प्रेरणा देनेवाले प्रभाव-शिल्पी भी।" जीवन परिचय - अमर गायक कविवर सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म 20 मई, सन् 1900 ई॰ को, अल्मोड़ा के निकट कौसानी ग्राम में हुआ था। जन्म के 6 घण्टे के पश्चात् ही इनकी माता का देहान्त हो गया और पिता तथा दादी के वात्सल्य की छाया में इनका प्रारम्भिक लालन-पालन हुआ। पन्तजी