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Showing posts from June, 2021

Premchand Ka Jivan Parichay

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( जीवनकाल सन् 1880 ई॰ से सन् 1936 ई॰ ) जीवन परिचय - कहानी एवं उपन्यास सम्राट् की उपाधि से विभूषित स्वनाम धन्य प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई, सन् 1880 ई॰ में उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के एक छोटे-से गाॅंव लमही में हुआ था। इनके बचपन का नाम धनपतराय था, किन्तु ये अपनी कहानियाॅं उर्दू में 'नवाबराय' के नाम से लिखते थे और हिन्दी में प्रेमचन्द के नाम से। कुछ राजनैतिक कहानियाॅं उन्होंने उर्दू में ही धनपतराय नाम से लिखीं। इनके द्वारा रचित 'सोजे वतन' ने ऐसी हलचल मचायी कि सरकार ने उसे जब्त कर लिया। गरीब परिवार में जन्म लेने और अल्पायु में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण इनका बचपन बड़े कष्टों में बीता, किन्तु जिस साहस और परिश्रम से इन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा, वह साधनहीन, किन्तु कुशाग्र-बुद्धि और परिश्रमी छात्रों के लिए प्रेरणाप्रद है। अभावग्रस्त होने पर भी इन्होंने एम॰ ए॰ और बी॰ ए॰ की परीक्षाऍं उत्तीर्ण कीं। प्रारम्भ में ये कुछ वर्षों तक एक स्कूल में 20 रुपये मासिक पर अध्यापक रहे। बाद में शिक्षा विभाग में सब-डिप्टी इंस्पेक्टर हो गये। कुछ दिनों बाद असहयोग-आन्दोलन से सहानु

Raskhan Ka Jivan Parichay

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  ( जीवनकाल सन् 1533 ई॰ से सन् 1618 ई॰ ) कितने ही मुसलमान कवियों ने हिन्दी-काव्य को समृद्ध करके अपने हिन्दी-प्रेम का परिचय दिया है, किन्तु इन सबमें सबसे अधिक सरस और सुकोमल काव्य यदि किसी का है तो वह रसखान का है। कविवर रसखान सच्चे कवि थे। ये भावों के सागर तथा रस की खान थे। वास्तव में ये भगवान् श्रीकृष्ण के दीवाने थे। इनके हृदय से निकली काव्य-पंक्तियाॅं सभी दृष्टियों से अद्वितीय हैं। डाॅ॰ राजेश्वरप्रसाद चतुर्वेदी के शब्दों में, "रसखान भक्तिकाल के सुप्रसिद्ध, लोकप्रिय एवं सरस कवि थे। उनके सवैये हिन्दी-साहित्य में बेजोड़ हैं।" जीवन परिचय - रसखान का नाम सैयद इब्राहीम था। इनका जन्म सन् 1533 ई॰ के लगभग दिल्ली में हुआ माना जाता है। इनका जीवन-वृत्त अभी भी अन्धकार में है। इनका सम्बन्ध दिल्ली के राजवंश से था। इस तथ्य पर निम्नलिखित दोहे से प्रकाश पड़ता है- देखि गदर हित साहिबी, दिल्ली नगर मसान। छिनहिं बादशा वंश की, ठसक छाड़ि रसखान।। डाॅ॰ नगेन्द्र के अनुसार इन पंक्तियों में उल्लिखित 'गदर' और 'दिल्ली' के श्मशान बन जाने का समय विद्वानों ने सन् 1555 ई॰ अनुमानित किया

Meerabai Ka Jeevan Parichay

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  ( जीवनकाल सन् 1498 ई॰ से सन् 1546 ई॰ ) जीवन परिचय - कृष्ण की प्रेम-दीवानी और पीर की गायिका मीराबाई जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी की प्रपौत्री एवं रत्नसिंह की पुत्री थीं। इनका जन्म सन् 1498 ई॰ में राजस्थान में मेड़ता के समीप चौकड़ी नामक गाॅंव में हुआ था। बचपन में ही इनकी माता का स्वर्गवास हो गया था; अतः इनका पालन-पोषण दादा की देख-रेख में राजसी ठाट-बाट के साथ हुआ। इनके दादा राव दूदाजी बड़े धार्मिक स्वभाव के थे, जिनका मीरा के जीवन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। मीरा जब मात्र 8 वर्ष की थीं, तभी उन्होंने अपने मन में कृष्ण को पति-रूप में स्वीकार कर लिया था। इनकी भक्ति-भावना के विषय में डाॅ॰ राजेश्वरप्रसाद चतुर्वेदी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है- "बीस वर्ष की अवस्था में ही मीरा विधवा हो गयीं और जीवन का लौकिक आधार छिन जाने पर अब स्वाभाविक रूप से उनका असीम स्नेह, अनन्त प्रेम और अद्भुत प्रतिभास्त्रोत गिरधरलाल की ओर उमड़ पड़ा। मेवाड़ की राजशक्ति का घोर विरोध सहन करके, सभी कष्टों को सहन करते हुए विष का प्याला पीकर भी उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति-भावना को अक्षुण्ण बनाये रखा।&q

Rahimdas Ka Jeevan Parichay

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  ( जीवनकाल सन् 1556 ई॰ से सन् 1627 ई॰ ) जीवन परिचय - रहीमदास का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। इनका जन्म सन् 1556 ई॰ में लाहौर नगर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। ये अकबर के संरक्षक बैरमखाॅं के पुत्र थे। किन्हीं कारणों से अकबर और बैरमखाॅं में मतभेद हो गया। अकबर ने बैरमखाॅं पर विद्रोह का आरोप लगाकर हज पर भेज दिया; मार्ग में ही शत्रु मुबारक खाॅं ने उनकी हत्या कर दी। बैरमखाॅं की हत्या के उपरान्त अकबर ने रहीम और उनकी माता को अपने पास बुला लिया तथा इनके पालन-पोषण एवं शिक्षा का उचित प्रबन्ध किया। अपनी प्रतिभा के द्वारा इन्होंने हिन्दी, संस्कृत, अरबी, फारसी तथा तुर्की भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। रहीम अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक थे। ये अकबर के प्रधान सेनापति और मन्त्री भी थे। ये एक वीर योद्धा थे और बड़े कौशल से सेना का संचालन करते थे। इनकी दानशीलता की अनेक कहानियाॅं प्रचलित हैं। अरबी, तुर्की, फारसी तथा संस्कृत के ये पण्डित थे। हिन्दी काव्य के ये मर्मज्ञ थे और हिन्दी कवियों का बड़ा सम्मान करते थे। गोस्वामी तुलसीदास से भी इनका परिचय तथा स्नेह-सम्बन्ध था। वीर-योद्धा होने प

Kabir Das Ka Jivan Parichay

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  ( जीवनकाल सन् 1398 ई॰ से सन् 1518 ई॰ ) जीवन परिचय - सन्त काव्यधारा अर्थात् भक्तिकाल की निर्गुण काव्यधारा की ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख एवं प्रतिनिधि कवि सन्त कबीर का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा, सोमवार सन् 1398 ई॰ में माना जाता है- "चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ ठए। जेठ सुदी बरसाइत को, पूरनमासी प्रगट भए।।" हालाॅंकि कुछ अन्य विद्वान्; जैसे-श्यामसुन्दर दास, हजारीप्रसाद द्विवेदी, रामचन्द्र शुक्ल आदि 1456 वि. को ही कबीर का जन्म-सम्वत् स्वीकार करते हैं। एक जनश्रुति के अनुसार, इनका जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ था। इनकी माॅं विधवा ब्राह्मणी ने लोक-लाज के भय से इन्हें काशी के लहरतारा नामक स्थान पर एक तालाब के किनारे छोड़ दिया था, जहाॅं से नीरू नामक एक जुलाहा एवं उसकी पत्नी नीमा निःसन्तान होने के कारण इन्हें उठा लाए। कबीर का कथन है- 'काशी में हम परगट भए, रामानन्द चेताये।' इससे इनके जन्म स्थान और गुरु का पता चलता है। इनकी पत्नी का नाम लोई था तथा पुत्र कमाल एवं पुत्री कमाली थी। मस्तमौला एवं निर्भीक प्रकृति के कबीर व्यापक देशाटन एवं अनेक साधु-सन्तों के सम्पर्क

Keshavdas Ka Jivan Parichay

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( जीवनकाल सन् 1555 ई॰ से सन् 1617 ई॰ ) जीवन परिचय - हिन्दी काव्य-जगत में रीतिवाद साहित्य के प्रारम्भकर्त्ता, प्रचारक और महाकवि केशवदास का जन्म मध्यभारत के ओरछा राज्य में संवत् 1612 विक्रमी (सन् 1555 ई॰) में हुआ था। इनके पिता का नाम काशीनाथ मिश्र था। इनके पितामह का नाम पं॰ कृष्णदत्त था। वंश परम्परा से केशव को गहन पाण्डित्य प्राप्त हुआ था। केशव राजाश्रय प्राप्त दरबारी कवि थे। ये ओरछा के राजा मधुकर शाह द्वारा विशेष सम्मानित थे। महाराज के अनुज इन्द्रजीत सिंह केशव को अपना गुरु मानते थे। ओरछा नरेश ने इनको 21 गाॅंव तथा मन्त्रिपद भी प्रदान किया था। संस्कृत भाषा और साहित्य पर अधिकार केशव के वंश की विशेषता थी। संवत् 1674 विक्रमी (सन् 1617 ई॰) में इनका स्वर्गवास हुआ था। महाकवि केशवदास का समय भक्ति तथा रीतिकाल का सन्धियुग था। तुलसी तथा सूर ने भक्ति की जिस पावनधारा को प्रवाहित किया था, वह तत्कालीन राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितिवश क्रमशः ह्रासोन्मुख और क्षीण हो रही थी। दूसरी ओर जयदेव तथा विद्यापति ने जिस श्रृंगारिक कविता की नींव डाली थी, उसके अभ्युदय का आरम्भ हो चुका था। वास्तुकला तथा ललित कलाओं

Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay

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( जीवनकाल सन् 1897 ई॰ से सन् 196 1 ई॰ ) जीवन परिचय - सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में 21 फरवरी, सन् 1897 ई॰ में हुआ था। इनके पिता पं॰ रामसहाय त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के बैसवाड़ा क्षेत्र के जिला उन्नाव के गढ़ाकोला ग्राम के निवासी थे और महिषादल राज्य में जाकर राजकीय सेवा में कार्य कर रहे थे। जब सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी छोटे ही थे तभी उनके माता-पिता का असामयिक निधन हो गया। युवा होने पर साहित्यिक अभिरुचि से सम्पन्न मनोहरा देवी से इनका विवाह हुआ। लेकिन वे भी शीघ्र ही इनमें साहित्यिक संस्कार जगाकर एक पुत्र और पुत्री का भार इनके ऊपर छोड़कर इस संसार से विदा हो गई। पुत्री सरोज जब बड़ी हुई तो इन्होंने उसका विवाह किया, लेकिन थोड़े ही दिनों में उसने भी ऑंखें मूॅंद लीं। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी अपनी इस विवाहिता पुत्री के निधन से अत्यधिक क्षुब्ध हो उठे। निधन के इस विक्षोभ को इन्होंने अपनी रचना 'सरोजस्मृति' में वाणी दी। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी ने प्रारम्भ में अपने परिवार के भरण-पोषण के लि

Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

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( जीवनकाल सन् 1924 ई॰ से सन् 1995 ई॰ ) आधुनिक हिन्दी-गद्य साहित्य के व्यंग्यकारों में हरिशंकर परसाई का नाम अग्रगण्य है। आपके व्यंग्य के विषय सामाजिक एवं राजनीतिक हैं। यद्यपि आपने साहित्य की अन्य विधाओं पर भी अपनी लेखनी चलाई है परन्तु आपकी प्रसिद्धि व्यंग्यकार के रूप में ही है। समय की कमजोरियों एवं राजनीति पर तीखे व्यंग्य करने में आप पटु हैं। जीवन परिचय - हरिशंकर परसाई का जन्म मध्य प्रदेश के इटारसी के निकट जमानी नामक ग्राम में 22 अगस्त, सन् 1924 ई॰ में हुआ था। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा से स्नातक तक की शिक्षा मध्य प्रदेश में हुई। आपने नागपुर विश्वविद्यालय से एम॰ ए॰ हिन्दी की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात् कुछ वर्षों तक आपने अध्यापन कार्य किया। 10 अगस्त, सन् 1995 ई॰ में आपका स्वर्गवास हो गया। बाल्यावस्था से ही आपकी रुचि साहित्य लेखन में थी। अपने अध्यापन के साथ-साथ ही आप साहित्य सृजन करते रहे। परन्तु जब नौकरी साहित्य सृजन में बाधक होने लगी, तब आपने अध्यापन को तिलांजलि देकर साहित्य-साधना को ही अपना जीवन समर्पित कर दिया। आपने जबलपुर से 'वसुधा' नामक पत्रिका के सम्पादन एवं प्रकाश