Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

(जीवनकाल सन् 1924 ई॰ से सन् 1995 ई॰)

आधुनिक हिन्दी-गद्य साहित्य के व्यंग्यकारों में हरिशंकर परसाई का नाम अग्रगण्य है। आपके व्यंग्य के विषय सामाजिक एवं राजनीतिक हैं। यद्यपि आपने साहित्य की अन्य विधाओं पर भी अपनी लेखनी चलाई है परन्तु आपकी प्रसिद्धि व्यंग्यकार के रूप में ही है। समय की कमजोरियों एवं राजनीति पर तीखे व्यंग्य करने में आप पटु हैं।

जीवन परिचय- हरिशंकर परसाई का जन्म मध्य प्रदेश के इटारसी के निकट जमानी नामक ग्राम में 22 अगस्त, सन् 1924 ई॰ में हुआ था। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा से स्नातक तक की शिक्षा मध्य प्रदेश में हुई। आपने नागपुर विश्वविद्यालय से एम॰ ए॰ हिन्दी की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात् कुछ वर्षों तक आपने अध्यापन कार्य किया। 10 अगस्त, सन् 1995 ई॰ में आपका स्वर्गवास हो गया।

बाल्यावस्था से ही आपकी रुचि साहित्य लेखन में थी। अपने अध्यापन के साथ-साथ ही आप साहित्य सृजन करते रहे। परन्तु जब नौकरी साहित्य सृजन में बाधक होने लगी, तब आपने अध्यापन को तिलांजलि देकर साहित्य-साधना को ही अपना जीवन समर्पित कर दिया। आपने जबलपुर से 'वसुधा' नामक पत्रिका के सम्पादन एवं प्रकाशन का कार्य प्रारम्भ किया। लेकिन अर्थाभाव के कारण शीघ्र ही उसे बन्द कर दिया। आपके निबन्ध और व्यंग्य सामयिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे, परन्तु नियमित रूप से आपने धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान के लिए अपनी रचनाऍं लिखीं।

हरिशंकर परसाई जी की रचनाऍं इस प्रकार हैं-

  1. कहानी-संग्रह- हॅंसते हैं रोते हैं।
  2. व्यंग्य संग्रह- तब की बात और थी, भूत के पाॅंव पीछे, बेईमान की परत, पगडण्डियों का जमाना, सदाचार का ताबीज, शिकायत मुझे भी है और अन्त में।

हरिशंकर परसाई जी द्वारा लिखित कहानी, उपन्यास, तथा निबन्ध समाज तथा व्यक्ति पर चोट करते हैं। समाज और व्यक्ति में कुछ ऐसी विसंगतियाॅं होती हैं जो जीवन को आडम्बरपूर्ण बना देती हैं। इन्हीं विषमताओं को आपने पर्दाफाश किया है। कभी-कभी छोटी-छोटी बातें भी हमारे व्यक्तित्व को विघटित कर देती हैं। हरिशंकर परसाई जी के लेख पढ़ने के बाद हमारा ध्यान इन विसंगतियों और कमजोरियों की ओर बरबस चला जाता है।

भाषा-शैली

हरिशंकर परसाई जी एक सफल व्यंग्यकार हैं और व्यंग्य के अनुरूप ही भाषा लिखने में कुशल हैं। आपकी रचनाओं में भाषा के बोलचाल के शब्दों एवं तत्सम तथा विदेशी भाषाओं के शब्दों का चयन भी उच्चकोटि का है। अर्थवत्ता की दृष्टि से आपका शब्द-चयन अति सार्थक है। लक्षणा एवं व्यंजना का कुशल उपयोग आपके व्यंग्य को पाठक के मन तक पहुॅंचाने में समर्थ रहा है। आपकी भाषा में यत्र-तत्र मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग हुआ है, जिससे आपकी भाषा में प्रवाह आ गया है।

आपकी रचनाओं में शैली के विभिन्न रूपों के दर्शन होते हैं-

  1. व्यंग्यात्मक शैली- हरिशंकर परसाई जी की शैली व्यंग्य प्रधान है। आपने जीवन के विविध क्षेत्रों में व्याप्त विसंगतियों पर प्रहार करने के लिए व्यंग्य का आश्रय लिया है। सामाजिक तथा राजनीतिक फरेबों पर भी आपने अपने व्यंग्य से करारी चोट की है। इस शैली की भाषा मिश्रित है। सटीक शब्द-चयन द्वारा लक्ष्य पर करारे व्यंग्य किए गए हैं।
  2. विवरणात्मक शैली- प्रसंगवश, कहीं-कहीं, आपकी रचनाओं में शैली के इस रूप के दर्शन होते हैं। इस शैली की भाषा मिश्रित है।
  3. उद्धरण शैली- अपने कथन की पुष्टि के लिए आपने अपनी रचनाओं में शैली के इस रूप का उन्मुक्त भाव से प्रयोग किया है। आपने रचनाओं में गद्य तथा पद्य दोनों ही उद्धरण दिये हैं। इस शैली के प्रयोग से आपकी रचनाओं में प्रवाह उत्पन्न हो गया है।
  4. सूक्ति कथन शैली- सूक्तिपरक कथनों के द्वारा हरिशंकर परसाई जी ने विषय को बड़ा रोचक बना दिया है। कहीं आपकी सूक्ति तीक्ष्ण व्यंग्य से परिपूर्ण होती है तो, कहीं विचार और संदेश लिए हुए होती है।

हरिशंकर परसाई जी ने सामाजिक रूढ़ियों, राजनीतिक विडम्बनाओं तथा सामयिक समस्याओं को अपने व्यंग्य-बाणों का लक्ष्य बनाया और एक सफल व्यंग्यकार के रूप में यथेष्ट कीर्ति प्राप्त की। जब-जब हिन्दी साहित्य में व्यंग्यकारों की बात चलेगी, श्री हरिशंकर परसाई को एक सफल व्यंग्यकार के रूप में याद किया जाएगा।

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