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( जीवनकाल सन् 1898 ई० से सन् 1966 ई० ) जीवन परिचय - उदयशंकर भट्ट का जन्म 3 अगस्त, सन् 1898 ई० को इनकी ननिहाल इटावा, उत्तर प्रदेश में हुआ। आपके पूर्वज गुजरात के निवासी थे। वहीं से आकर उत्तर प्रदेश में बस गए। इनके परिवार का वातावरण साहित्य और संस्कृतनिष्ठ था; अतः साहित्यिक अभिरुचि इनमें बचपन से ही उत्पन्न हो गयी थी। 14 वर्ष की अवस्था में ही इनके माता-पिता का देहान्त हो गया। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बी० ए० , पंजाब से शास्त्री और कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) से काव्यतीर्थ की परीक्षाऍं उत्तीर्ण कीं। सन् 1923 ई० में ये जीविका की खोज में लाहौर चले गये। बहुत दिनों तक आप लाहौर में हिन्दी एवं संस्कृत के अध्यापक रहे तथा स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी आप भाग लेते रहे। देश के विभाजन के बाद आप लाहौर से दिल्ली आये तथा आकाशवाणी के परामर्शदाता और निदेशक रहे। नागपुर एवं जयपुर में रेडियो केन्द्रों पर भी आपने सेवा की। सेवानिवृत्त होकर आप कहानी, उपन्यास, आलोचना एवं नाटक लिखते रहे तथा 22 फरवरी, सन् 1966 ई० में इनका स्वर्गवास हो गया। रचनाऍं 'समस्या का अन्त', 'धूमशिखा', 'वापिसी&
(जीवनकाल सन् 1856 ई॰ से सन् 1894 ई॰) आधुनिक हिन्दी-निर्माताओं की बृहत्त्रयी में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बालकृष्ण भट्ट और प्रतापनारायण मिश्र की गणना होती है। मिश्रजी को यद्यपि न तो भारतेन्दु जैसे साधन मिले थे ओर न ही भट्टजी जैसी लम्बी आयु, फिर भी मिश्रजी ने अपनी प्रतिभा और लगन से उस युग में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया था। जीवन परिचय - पं॰ प्रतापनारायण मिश्र का जन्म सन् 1856 ई॰ में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बैजेगाॅंव में हुआ था। मिश्रजी के जन्म के कुछ दिनों बाद ही इनके ज्योतिषी पिता पं॰ संकटाप्रसाद मिश्र कानपुर आकर सपरिवार रहने लगे। यहीं पर इनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। पिता इन्हें ज्योतिष पढ़ाकर अपने पैतृक व्यवसाय में ही लगाना चाहते थे, परन्तु इनका मनमौजी स्वभाव उसमें नहीं रमा। इन्होंने कुछ समय तक अंग्रेजी स्कूल में भी शिक्षा प्राप्त की, किन्तु कोई भी अनुशासन और निष्ठा का कार्य, जिसमें विषय की नीरसता के साथ प्रतिबन्धता भी आवश्यक होती, इनके मौजी और फक्कड़ स्वभाव के विपरीत था; अतः ये यहाॅं भी पढ़ न सके। घर में स्वाध्याय से ही इन्होंने संस्कृत, उर्दू, फारसी,
(जीवनकाल सन् 1892 ई० से सन् 1981 ई०) राय कृष्णदास आधुनिक हिन्दी साहित्य में गद्य-गीत प्रवर्तक माने जाते हैैं। आपने अपने साहित्य में आत्मा तथा परमात्मा की मोहक प्रेम-क्रीड़ाओं का अद्वितीय चित्रण किया है। राय कृष्णदास अपने गद्य-काव्यों के क्षेत्र में पर्याप्त यश प्राप्त कर चुके हैं। आपके गद्य गीतों में पद्य की भाॅंति तुक तो नहीं, लेकिन लय और संगीत विद्यमान है। आत्मा और प्रकृति का सौन्दर्य आपके गद्य-गीतों में सर्वत्र बिखरा दिखाई देता है। ये गीत सरल, सुगम और आकार में छोटे हैं, तथा काव्य जटिलता से दूर हैं। जीवन परिचय - राय कृष्णदास जी का जन्म काशी के प्रसिद्ध राय परिवार में सन् 1892 ई० में हुआ था। आपके पिता राय प्रहलाददास, राय भारतेन्दु जी के सम्बन्धी तथा काव्य-कला प्रेमी थे। आपका परिवार कला, संस्कृति और साहित्य और साहित्य प्रेम के लिए प्रसिद्ध था। इस प्रकार राय साहब को हिन्दी-प्रेम विरासत में प्राप्त हुआ। आप बचपन में जब 8 वर्ष के थे, तभी से कविता करने लगे। जब आप 12 वर्ष के थे तभी आपके पिता का स्वर्गवास हो गया, अतः आपकी स्कूली शिक्षा अधिक नहीं हो पायी। उत्कट ज्ञान लिप्सा होने के कारण
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