Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay

(जीवनकाल सन् 1897 ई॰ से सन् 1961 ई॰)

जीवन परिचय- सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में 21 फरवरी, सन् 1897 ई॰ में हुआ था। इनके पिता पं॰ रामसहाय त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के बैसवाड़ा क्षेत्र के जिला उन्नाव के गढ़ाकोला ग्राम के निवासी थे और महिषादल राज्य में जाकर राजकीय सेवा में कार्य कर रहे थे। जब सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी छोटे ही थे तभी उनके माता-पिता का असामयिक निधन हो गया। युवा होने पर साहित्यिक अभिरुचि से सम्पन्न मनोहरा देवी से इनका विवाह हुआ। लेकिन वे भी शीघ्र ही इनमें साहित्यिक संस्कार जगाकर एक पुत्र और पुत्री का भार इनके ऊपर छोड़कर इस संसार से विदा हो गई। पुत्री सरोज जब बड़ी हुई तो इन्होंने उसका विवाह किया, लेकिन थोड़े ही दिनों में उसने भी ऑंखें मूॅंद लीं। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी अपनी इस विवाहिता पुत्री के निधन से अत्यधिक क्षुब्ध हो उठे। निधन के इस विक्षोभ को इन्होंने अपनी रचना 'सरोजस्मृति' में वाणी दी।

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी ने प्रारम्भ में अपने परिवार के भरण-पोषण के लिये महिषादल राज्य में नौकरी की किन्तु अपने स्वाभिमान से परिपूर्ण व्यक्तित्व के कारण उस सामन्ती-वातावरण से ये सामंजस्य नहीं स्थापित कर सके। फलस्वरूप वहाॅं से अलग होकर इन्होंने कलकत्ता में अपनी रुचि के अनुरूप रामकृष्ण-मिशन के पत्र 'समन्वय' का सम्पादन भार सॅंभाला। उसके बाद 'मतवाला' के सम्पादक मण्डल में सम्मिलित हुए। 3 वर्ष बाद लखनऊ आकर 'गंगा पुस्तकमाला' का सम्पादन करने लगे तथा 'सुधा' के सम्पादकीय लिखने लगे। फक्कड़ और अक्खड़ स्वभाव के कारण यहाॅं भी इनकी नहीं निभी और लखनऊ छोड़कर वे इलाहाबाद में रहने लगे। आर्थिक विपन्नता भोगते हुए इन्होंने जनसाधारण के साथ अपने को एकात्म कर दिया और प्रगतिशील काव्य-रचनाओं के साथ बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त की। 15 अक्टूबर, सन् 1961 ई॰ को प्रयाग में ही इनका स्वर्गवास हो गया।

कृतित्व एवं व्यक्तित्व- सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' ने गद्य एवं पद्य पर समान रूप से लेखनी चलाई है।

इनकी काव्य रचनाऍं निम्नलिखित हैं-

अनामिका, राम की शक्ति पूजा (लघु आकार का प्रौढ़ प्रबन्ध), परिमल, गीतिका, अपरा, तुलसीदास (खण्डकाव्य), कुकुरमुत्ता, अणिमा, आराधना, बेला, नये पत्ते, चतुरी चमार, बिल्लेसुर बकरिहा आदि प्रस्तुत कीं। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी ने स्वच्छन्तावादी विचारधारा को लेकर भी अनेक उपन्यास प्रभावती, निरुपमा तथा कहानियाॅं लिखी थीं।

आधुनिक चेतना के विद्रोहशील स्वरूप की सर्वाधिक और सबसे समर्थ अभिव्यक्ति सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी के काव्य में है। बंगभूमि में जन्मे होने के कारण बंगला भाषा और उसके आधुनिक चेतना से ओत-प्रोत साहित्य का इन्हें भली प्रकार अध्ययन-अनुशीलन का अवसर मिला। बंगाल के धार्मिक महापुरुषों- रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द आदि ने भी इन्हें प्रभावित किया। विश्वकवि रवीन्द्रनाथ की काव्य-प्रतिभा का अभिनन्दन करते हुए इन्होंने अपने प्रारम्भिक रचनाकाल में 'रवीन्द्र कविता कानन' की रचना की किन्तु इनका व्यक्तित्व स्वयं महाप्राण था, इसलिये ये सभी प्रभाव इनके भीतर पूर्णतः समाहित हो गये। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी की मातृभाषा हिन्दी थी और उसके प्रति इनके मन में पर्याप्त अनुराग था। इसलिये 'सरस्वती', 'मर्यादा' आदि पत्रिकाओं के गम्भीर अध्ययन के माध्यम से बंगला-भाषियों के बीच रहते हुए भी इन्होंने हिन्दी का अभ्यास किया और हिन्दी में ही साहित्य का सृजन आरम्भ किया।

साहित्यिक योगदान

विद्रोही-स्वर- सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी ने अपने विद्रोहशील व्यक्तित्व को लेकर मन के प्रबल भावावेग को जब वाणी दी तो छन्द के बन्धन सहज ही विच्छिन्न हो गये और मुक्त छन्द का आविर्भाव हुआ। कविता का यह स्वच्छन्द स्वरूप इनकी प्रथम रचना 'जूही की कली' से ही द्रष्टव्य है। साहित्य का स्वच्छन्दतावादी संविधान सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी की रचनाओं में ही सबसे सशक्त रूप में प्रकट हुआ है। स्वच्छन्दतावाद या छायावाद की मूलभूत प्रवृत्ति आत्मानुभूति के आन्तरिक स्पर्श से अलंकृत भाषा में अभिव्यक्त है, जो मुक्त छन्द के अतिरिक्त कभी-कभी गीत रूप भी ग्रहण करती है। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी की स्वच्छन्दतावादी काव्यकला का प्रमुख स्वरूप इनके 'परिमल' काव्य-संग्रह की रचनाओं में दृष्टिगत होता है। इसमें हमें सौन्दर्य चेतना के मानवीय, प्रकृति-परक और आध्यात्मिक सभी रूप देखने को मिल जाते हैं। अतीत के भी भावना और कल्पना से अनुरञ्जित अनेक भव्य और प्रेरणाप्रद चित्र हैं। उनका सहज संवेदनशील हृदय समाज के अनेक पीड़ितों और प्रपीड़ितों के प्रति सहानुभूति से परिपूर्ण हो उठा है। इसी अनुभूति को लेकर इनका विद्रोही मन सजग हो उठा है और बड़ी ओजस्वी शब्दावली में व्यक्ति, समाज और सम्पूर्ण देश को विप्लव के लिये आह्वान करने लगा है।

इनके व्यक्तित्व के कोमल पक्ष का सहज अभिव्यंजना 'गीतिका' में है जिसके विभिन्न गीतों में बंगला के माध्यम से गृहीत पाश्चात्य संगीत के संविधान का उपयोग है।

प्रकृति-चित्रण- सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' के काव्य में प्रकृति का सजीव एवं संश्लिष्ट चित्रांकन किया गया है। भारतीय संस्कृति के प्रति कवि के हृदय में पूर्ण आस्था है। स्वदेश प्रेम के प्रचुर भाव भी उनके काव्य में मुखरित हुए हैं।
भाषा-सौष्ठव- सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी की भाषा भाव एवं विषयवस्तु के अनुकूल बदलती रहती है। संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का क्लिष्ट रूप तथा सरल एवं व्यावहारिक खड़ी बोली का रूप इनके काव्य में प्रयुक्त हुआ है। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी का शब्द चयन उच्चकोटि का है, आपकी भाषा के प्रमुख गुणों में- चित्रात्मकता अर्थ-गाम्भीर्य, संगीतात्मकता तथा पदलालित्य आदि हैं।
अलंकार-वर्णन- परम्परागत अलंकारों के साथ मानवीकरण, ध्वन्यर्थ व्यंजना, तथा विशेषण विपयर्य जैसे अलंकारों का सुप्रयोग आपके काव्य में मिलता है।

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जी को इस प्रकार छायावादी कवियों में सबसे अधिक विद्रोहशील, सर्वाधिक उदात्त और जन-जीवन के प्रति विशेष रूप से सजग कहा जा सकता है। छायावाद के सुदृढ़ स्तम्भों में से आप एक हैं।

Comments

Popular posts from this blog

Uday Shankar Bhatt Ka Jeevan Parichay

प्रताप नारायण मिश्र का जीवन परिचय - Pratap Narayan Mishra Biography In Hindi

राय कृष्णदास का जीवन परिचय - Rai Krishna Das Biography In Hindi