Rambriksh Benipuri Ka Jeevan Parichay

 (जीवनकाल सन् 1902 ई॰ से सन् 1968 ई॰)

रामवृक्ष बेनीपुरी की गणना हिन्दी साहित्य के महान् लेखकों में की जाती है। आपका लिखा गया प्रत्येक शब्द व वाक्य क्रान्ति के क्षेत्र में एक नवीन मार्ग प्रशस्त करता है। आप बहुमुखी प्रतिभा से मण्डित थे। रेखाचित्र को महत्त्वपूर्ण स्थान देने का श्रेय आपको ही है। समाजसेवी एवं राजनीतिज्ञ के नाते आपने जो कुछ लिखा है, वह स्वतन्त्र भाव से लिखा है।

जीवन परिचय- रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर नामक ग्राम में जनवरी, सन् 1902 ई॰ में हुआ था। आपके पिता श्री फूलवन्तसिंह एक साधारण किसान थे। बाल्यावस्था में ही आपके माता-पिता की छत्र-छाया आपके सिर से उठ गई थी तथा आपका लालन-पालन आपकी मौसी ने किया था। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा बेनीपुर में ही हुई थी बाद में अपनी ननिहाल में भी पढ़े। मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने से पूर्व ही सन् 1920 ई॰ में आपने पढ़ाई छोड़ दी और गांधी जी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। मात्र 18 वर्ष की आयु में आप स्वतन्त्रता सैनिक बन गये। स्वाध्याय के बल पर ही आपने हिन्दी साहित्य की 'विशारद' परीक्षा उत्तीर्ण की।

स्वतन्त्रता के इस महान् पुजारी ने अपने निबन्धों एवं लेखों के द्वारा मनुष्यों के हृदय में देशभक्ति की भावना का संचार किया। आप राष्ट्रसेवा के साथ-साथ साहित्य साधना भी करते रहे। देश-सेवा के परिणामस्वरुप आपको अनेक बार जेल यातनाऍं भी सहन करनी पड़ीं। स्वतन्त्रताप्राप्ति के पश्चात् देश में पद और मान पाने की जो होड़ लगी उसे देखकर काफी हृदय विचलित हो उठता था। स्वतन्त्रता और साहितय के इस प्रेमी का सन् 1968 ई॰ में इनका स्वर्गवास हो गया।

बाल्यावस्था से ही बेनीपुरी जी की साहित्य लेखन में अभिरुचि थी। 15 वर्ष की अल्पायु से ही आप पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखने लगे थे। पत्रकारिता से ही आपकी साहित्य साधना का श्रीगणेश हुआ था।कारागारवास में भी आपने साहित्य साधना को बनाये रखा। आपने बालक, तरुण भारती, मित्र, किसान, योगी, हिमालय तथा जनता आदि पत्र-पत्रिकाओं का सफल सम्पादन किया। आपने उत्कृष्ट कोटि का साहित्य सृजन किया। आपकी रचनाओं के विषय देशभक्ति, भारतीय संस्कृति तथा समाज-निर्माण हैं। आपके गद्य साहित्य में गहन अनुभूतियों एवं उच्च कल्पनाओं की स्पष्ट झाॅंकी मिलती है। गद्य साहित्य की उपन्यास, नाटक, कहानी, संस्मरण, निबन्ध, रेखाचित्रों आदि के लिए आप सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। आपके सम्पूर्ण साहित्य को 'बेनीपुरी ग्रन्थावली' के नाम से 10 खण्डों में प्रकाशित करने की योजना थी, जिसके 2 खण्ड प्रकाशित हो चुके हैं। निबन्धों और रेखाचित्रों के लिए आपको अत्यधिक ख्याति प्राप्त हुई। वस्तुतः आप उत्कृष्ट कोटि के अप्रतिम साहित्यकार थे।

इनकी प्रमुख कृतियाॅं निम्नलिखित हैं-

  1. रेखाचित्र- माटी की मूरतें, लाल तारा आदि।
  2. संस्मरण- जंजीरें और दीवार, तथा मील के पत्थर।
  3. निबन्ध- गेहूॅं बनाम गुलाब, मशाल आदि।
  4. कथा साहित्य- पतितों के देश में (उपन्यास) तथा चिता के फुल (कहानी)।
  5. जीवनी- महाराणा प्रतापसिंह, कार्ल मार्क्स, जयप्रकाश नारायण।
  6. नाटक- अम्बपाली, सीता की माॅं, रामराज्य आदि।
  7. यात्रा वृत्तान्त- पैरों में पंख बाॅंधकर एवं उड़ते चलें।
  8. आलोचना- विद्यापति पदावली एवं सुबोध टीका आपकी आलोचनात्मक कृतियाॅं हैं।
  9. सम्पादन- तरुण भारती, बालक, युवक, किसान, मित्र, कैदी, योगी, जनता, चुन्नू-मुन्नू, तूफान आदि का सफल सम्पादन किया।

भाषा-शैली

भाषा पर बेनीपुरी जी का असाधारण अधिकार है। आपने प्रसंग एवं विषयानुसार ही भाषा का प्रयोग किया है। भाषा के तो आप जादूगर थे। आपकी भाषा में ओज एवं वेग है। आपने खड़ी बोली के साथ कुछ आंचलिक शब्दों का भी प्रयोग किया है। किन्तु इन प्रान्तीय शब्दों से भाषा के प्रवाह में कोई विघ्न नहीं आता है। आपने तत्सम्, तद्भव, देशज और अन्य भाषाओं के शब्दों का बड़ी सहजता से एक साथ प्रयोग किया है। उर्दू-फारसी के शब्दों और तत्सम शब्दों से युक्त उनकी हिन्दी का रूप बड़ा ही आकर्षक एवं प्रवाहपूर्ण है। आपकी भाषा बिम्ब प्रधान है। आपने ध्वन्यात्मक शब्दों का प्रयोग बड़ी कुशलता से किया है। बेनीपुरी जी की भाषा में 'लक्षणा' का सौन्दर्य भी प्रचुरता से मिलता है। वाक्य छोटे तथा भाव पाठकों को विभोर करने में सक्षम हैं।मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से आपकी भाषा में सजीवता आ गई है। आपको शब्दशिल्पी भी कहा जाता है।

बेनीपुरी जी की शैली विषयानुकूल तथा अप्रतिम है। उनके साहित्य में हमें निम्नलिखित शैलियों के दर्शन होते हैं-

  1. वर्णनात्मक शैली- इस शैली में आपने रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रा, कहानी तथा जीवनियों की रचना की। लेखक अपनी बात को विविध आयामों से प्रकट करना चाहता है। इसकी भाषा सरल, वाक्य छोटे तथा वर्णन सजीव है।
  2. चित्रोपम शैली- किसी व्यक्ति या वस्तु का शब्दचित्र प्रस्तुत करने में आप सिद्धहस्त हैं। आपका यह कौशल रेखाचित्र में परिलक्षित होता है। इस शैली के वाक्य छोटे, परन्तु भावों में कसाव है। इसके माध्यम से आप विषय से साक्षात्कार करा देते हैं। 'माटी की मूरतें' ऐसी रचनाओं की सुन्दर कलावीथी है।
  3. भावात्मक शैली- आपके ललित निबन्धों की रचना प्रायः इसी शैली में हुई है। इसमें भावों का वेग, मार्मिकता एवं आलंकारिकता आदि के कारण साहित्य में सौन्दर्य आ गया है।
  4. प्रतीकात्मक शैली- प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात कहने में आप सिद्धहस्त हैं। 'गेहूॅं बनाम गुलाब' में इसी शैली का प्रयोग हुआ है। गेहूॅं भौतिकता, शरीर तृप्ति, कुटिल राजनीति आदि का प्रतीक है तथा गुलाब आध्यात्मिक, मानसिक तृप्ति एवं सौम्यता का प्रतीक है। आपके साहित्य में डायरी शैली, नाटकीय शैली, सूक्ति आदि शैलियों का भी प्रयोग हुआ है।

रामवृक्ष बेनीपुरी एक अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे। आपने अपने साहित्य के माध्यम से भारतीय समाज को नवचेतना से भर दिया। देश-प्रेम, त्याग, बलिदान और समाजसेवा से ओतप्रोत साहित्य का आपने सफल सृजन किया। आपके रेखाचित्र बड़े ही मार्मिक एवं सजीव हैं। सशक्त रेखाचित्रकार, उत्कृष्ट निबन्धकार एवं समर्थ शब्द शिल्पी के रूप में आप हिन्दी साहित्य जगत में अमर रहेंगे।

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