Trilochan Ka Jeevan Parichay
(जीवनकाल सन् 1917-2007 ई०)
कवि त्रिलोचन को हिन्दी-साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। वे आधुनिक हिन्दी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तम्भों में से एक थे। इस त्रयी के अन्य दो स्तम्भ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे।
जीवन परिचय- कवि त्रिलोचन शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के कठघरा चिरानी पट्टी में जगरदेव सिंह के घर 20 अगस्त, 1917 ई० को हुआ। इनका मूल नाम वासुदेव सिंह था। इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एम० ए० अंग्रेजी एवं लाहौर से संस्कृत में शास्त्री डिग्री प्राप्त की थी।
उत्तर प्रदेश के छोटे-से गाॅंव से बनारस विश्वविद्यालय तक के अपने सफर में उन्होंने दर्जनों पुस्तकें लिखीं और हिन्दी-साहित्य को समृद्ध किया। शास्त्री बाजारवाद के धुर विरोधी थे। हालाॅंकि उन्होंने हिन्दी में प्रयोगधर्मिता का समर्थन किया। उनका कहना था कि भाषा में जितने प्रयोग होंगे, वह उतनी ही समृद्ध होगी। शास्त्री ने हमेशा ही नवसृजन को बढ़ावा दिया। वह नए लेखकों के लिए उत्प्रेरक थे। 9 दिसम्बर, 2007 ई० को गाजियाबाद में उनका निधन हो गया।
त्रिलोचन शास्त्री हिन्दी के अतिरिक्त अरबी और फारसी भाषाओं के निष्णात ज्ञाता माने जाते थे। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी वे खासे सक्रिय रहे हैं। उन्होंने 'प्रभाकर', 'वानर', 'हंस', 'आज', 'समाज' जैसी पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया।
त्रिलोचन शास्त्री 1995 से 2001 ई० तक जन-संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। इसके अलावा वाराणसी के ज्ञानमण्डल प्रकाशन संस्था में भी काम करते रहे और हिन्दी व उर्दू के कई शब्दकोशों की योजना से भी जुड़े रहे। उन्हें हिन्दी साॅनेट का साधक माना जाता है। उन्होंने इस छन्द को भारतीय परिवेश में ढाला और लगभग 550 साॅनेट की रचना की। इसके अतिरिक्त कहानी, गीत, गजल और आलोचना से भी उन्होंने हिन्दी-साहित्य को समृद्ध किया। उनका पहला कविता-संग्रह 'धरती' सन् 1945 ई० में प्रकाशित हुआ था। 'गुलाब और बुलबुल', 'उस जनपद का कवि हूॅं' और 'ताप के ताए हुए दिन' उनके चर्चित कविता-संग्रह थे। त्रिलोचन शास्त्री के अब तक 17 कविता-संग्रह प्रकाशित हुए।
इनके अन्य प्रमुख कविता-संग्रह हैं-
कविता-संग्रह- 'शब्द', 'अरधान', 'तुम्हें सौंपता हूॅं', 'मेरा घर', 'चैती', 'अनकहनी भी', 'जीने की कला'।
कविता के अतिरिक्त त्रिलोचन शास्त्री ने गीत, नवगीत, कहानी, लेख और डायरी विधाओं पर भी अपनी लेखनी चलाई। पत्र-पत्रिकाओं के अतिरिक्त इन्होंने साहित्यिक कृतियों का सम्पादन भी किया।
इनकी साहित्यिक विधा सम्बन्धी रचनाऍं इस प्रकार हैं-
- सम्पादित- 'मुक्तिबोध की कविताऍं'।
- कहानी संग्रह -'देशकाल'।
- डायरी- 'दैनंदिनी'।
समालोचना
त्रिलोचन की काव्यगत विशेषताऍं- इन्होंने काव्य की प्रगतिशील धारा के यथार्थवादी आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इन्होंने भाषा-शैली और विषयवस्तु सभी में अपनी अलग छाप छोड़ी। त्रिलोचन ने वही लिखा, जो कमजोर के पक्ष में था। वे मेहनतकश और दबे-कुचले समाज की एक दूर से आती आवाज थे। उनकी कविता भारत के ग्राम और देहात के समाज के उस निम्नवर्ग को सम्बोधित थी, जो कहीं दबा था, कहीं जग रहा था, कहीं संकोच में पड़ा था-
उस जनपद का कवि हूॅं
जो भूखा दूखा है
नंगा है अनजान है कला नहीं जानता
कैसी होती है, वह क्या है, वह नहीं मानता
त्रिलोचन ने लोकभाषा अवधी और प्राचीन भाषा संस्कृत से प्रेरणा ली, इसलिए उनकी भाषा में दोनों भाषाओं की विशिष्टता दृष्टिगत होती है। उनकी भाषा हिन्दी कविता की परम्परागत धारा से जुड़ी हुई है। यही कारण है कि अपनी परम्परा से इतने नजदीक से जुड़े रहने के कारण ही उनमें आधुनिकता की सुन्दरता और सुवास थी।
प्रगतिशील काव्यधारा के कवि होने के कारण त्रिलोचन मार्क्सवादी चेतना से सम्पन्न कवि थे, लेकिन इस चेतना का उपयोग उन्होंने अपने ढंग से किया। प्रकट रूप में उनकी कविताऍं वाम विचारधारा के बारे में उस तरह नहीं कहतीं, जिस तरह नागार्जुन या केदारनाथ अग्रवाल की कविताऍं कहती हैं। त्रिलोचन के भीतर विचारों को लेकर कोई बड़बोलापन भी नहीं था। उनके लेखन में यह एक विश्वास हर जगह तैरता था कि परिवर्तन की क्रान्तिकारी भूमिका जनता ही निभाएगी।
त्रिलोचन शास्त्री ने गीत, गजल, साॅनेट, कुंडलियाॅं, बरवै, मुक्त छन्द जैसे अनेक प्रचलित छन्दों का प्रयोग अपनी कविता में किया। इन सभी में साॅनेट (चतुष्पदी) के कारण वह ज्यादा जाने गए। वह आधुनिक हिन्दी कविता में साॅनेट के जन्मदाता थे। हिन्दी में साॅनेट को विजातीय माना जाता था। लेकिन त्रिलोचन ने इसका भारतीयकरण किया। इसके लिए उन्होंने रोला छन्द को आधार बनाया तथा बोलचाल की भाषा और लय का प्रयोग करते हुए चतुष्पदी को लोकरंग में रॅंगने का काम किया। इस छन्द में उन्होंने जितनी रचनाऍं कीं, सम्भवतः स्पेन्सर, मिल्टन और शेक्सपीयर जैसे कवियों ने भी नहीं कीं। साॅनेट के जितने भी रूप-भेद साहित्य में कहे गए हैं, उन सभी का प्रयोग त्रिलोचन ने अपने काव्य में किया।
त्रिलोचन शास्त्री को 1989-90 ई० में हिन्दी अकादमी ने शलाका सम्मान से सम्मानित किया था। हिन्दी-साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें 'शास्त्री' और 'साहित्य रत्न' जैसी उपाधियों से सम्मानित किया जा चुका है। सन् 1982 ई० में 'ताप के ताए हुए दिन' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला था। इसके अलावा इन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी समिति पुरस्कार, हिन्दी संस्थान सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, शलाका सम्मान, भवानीप्रसाद मिश्र राष्ट्रीय पुरस्कार, सुलभ साहित्य अकादमी सम्मान, भारतीय भाषा परिषद् सम्मान आदि से भी सम्मानित किया गया था।
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