Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay

(जीवनकाल सन् 1907 ई॰ से सन् 1987 ई॰)

बुद्ध की करुणा, मीरा की वेदना, सूर का संगीत, छायावादी काव्य की सौन्दर्य-चेतना जिस कवयित्री के काव्य में एकरूप हो गए हैं, उसका नाम है महादेवी वर्मा। इन्हें 'आधुनिक युग की मीरा' कहे जाने का गौरव प्राप्त है। आधुनिक काव्य के साज-श्रृंगार में इन्होंने अविस्मरणीय योगदान दिया। विरह की कवयित्री के रूप में महादेवी के काव्य की समीक्षा करते हुए कविवर सुमित्रानन्दन पन्त ने लिखा है, "उनके काव्य का सर्वप्रथम तत्त्व वेदना, वेदना का आनन्द, वेदना का सौन्दर्य, वेदना के लिए आत्मसमर्पण है। वे तो वेदना के साम्राज्य की एकच्छत्र सम्राज्ञी हैं।"

जीवन परिचय- श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 ई॰ में उत्तर प्रदेश के सुप्रसिद्ध नगर फर्रुखाबाद में होलिका-दहन के पुण्य पर्व के दिन हुआ था। इनकी माता हेमरानी साधारण कवयित्री थीं एवं श्रीकृष्ण में अटूट श्रद्धा रखती थीं। इनके नाना को भी ब्रजभाषा में कविता करने का चाव था। नाना एवं माता के इन गुणों का महादेवी पर भी प्रभाव पड़ा। 9 वर्ष की छोटी उम्र में ही इनका विवाह स्वरूपनारायण वर्मा से हो गया, किन्तु इन्हीं दिनों इनकी माता का स्वर्गवास हो गया। माता का साया सिर से उठ जाने पर भी इन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा तथा पढ़ने में और अधिक मन लगाया। फलस्वरुप इन्होंने मैट्रिक से लेकर एम॰ ए॰ तक की परीक्षाऍं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं।  बहुत समय तक ये 'प्रयाग महिला विद्यापीठ' में प्रधानाचार्या पद पर भी कार्य करती रहीं।

चित्रकला और संगीत में महादेवीजी की विशेष रूचि थी। इसका प्रमाण इनकी कविताओं में भी दृष्टिगोचर होता है। महादेवीजी का काव्य संगीत की मधुरता से परिपूर्ण है। ये अपनी कविताओं में चित्रकला जैसे शब्दचित्र उपस्थित कर देती थीं। इनकी कविताओं में नारी-हृदय की कोमलता और सरलता की अभिव्यक्ति बड़ी मार्मिकता से हुई है। कहीं-कहीं इनमें एकाकीपन की झलक भी मिलती है।

सर्वप्रथम इनकी रचनाऍं 'चाॅंद' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुईं। ये 'चाॅंद' की सम्पादिका भी रहीं। इन्हें 'सेकसरिया' तथा 'मंगलाप्रसाद' पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने इन्हें 'पद्म-भूषण' की उपाधि से अलंकृत किया। सन् 1983 ई॰ में महादेवीजी को इनके काव्यग्रन्थ 'यामा' पर 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' प्राप्त हुआ और इसी वर्ष उत्तर प्रदेश सरकार ने इनको एक लाख रुपये का 'भारत भारती' पुरस्कार देकर इनकी साहित्यिक सेवाओं का सम्मान किया।

अपने मधुर गीतों से जन-जन की प्यास बुझानेवाली ये महान् कवयित्री 11 सितम्बर, सन् 1987 ई॰ को सदैव के लिए हमसे विदा हो गईं, लेकिन इनके गीत हमारे मानस-पटल पर हमेशा-हमेशा गूॅंजते रहेंगे।

महादेवी वर्मा विलक्षण काव्य-प्रतिभा से सम्पन्न कवयित्री थीं। इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् ही काव्य-रचना प्रारम्भ कर दी थी। ये निरन्तर काव्य-साधना में संलग्न रहीं और एक महान् कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हुईं। इनके काव्य में व्यक्त विरह-वेदना अपनी भावनात्मक गहनता के लिए अद्वितीय समझी जाती है। इसी कारण इन्हें 'आधुनिक युग की मीरा' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। विरह-वेदना की मर्मान्तक भावाभिव्यक्ति के कारण इन्होंने हिन्दी-काव्य-जगत् में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। ये छायावादी युग की कवयित्री थीं। करुणा और भावुकता इनके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताऍं थीं। इनकी रचनाओं में नारी-सुलभ गहन भावुकता और अन्तर्मुखी मनोवृत्ति के दर्शन होते हैं। इसी कारण इनके द्वारा रचित काव्य में रहस्यवाद, वेदना एवं सूक्ष्म अनुभूतियों के कोमल एवं मर्मस्पर्शी भाव व्यक्त हुए हैं।

महादेवीजी की प्रमुख रचनाऍं इस प्रकार हैं-

  1. नीहार- इस काव्य-संकलन में भावमय गीत संकलित हैं। इनमें वेदना का स्वर मुखर हुआ है।
  2. रश्मि- आत्मा-परमात्मा के मधुर सम्बन्धों पर आधारित गीत इस संग्रह में संकलित हैं।
  3. नीरजा- इसमें प्रकृति-चित्रणप्रधान गीत संकलित हैं। इन गीतों में सुख-दु:ख की अनुभूतियों को वाणी मिली है।
  4. सान्ध्यगीत- इसके अन्तर्गत परमात्मा से मिलन का चित्रण हुआ है।
  5. दीपशिखा- इसमें रहस्य-भावनाप्रधान गीतों को संगृहीत किया गया है।
  6. अन्य रचनाऍं- इसके अतिरिक्त 'अतीत के चलचित्र', 'स्मृति की रेखाऍं', 'श्रृंखला की कड़ियाॅं', 'पथ के साथी' आदि आपकी गद्य-रचनाऍं हैं। 'यामा' नाम से आपके विशिष्ट गीतों का संग्रह प्रकाशित हुआ है। 'सन्धिनी' और 'आधुनिक कवि' भी इनके गीतों के संग्रह हैं।

पद्य के क्षेत्र में महादेवी वर्मा की शैली का विकास धीरे-धीरे हुआ। इन्होंने भावात्मक शैली का प्रयोग किया, जो सांकेतिक एवं लाक्षणिक है। इनकी शैली में लाक्षणिक प्रयोगों, व्यंजना तथा समासोक्तियों के कारण कहीं-कहीं अस्पष्टता दुरूहता भी आ गई है, फिर भी वह सर्वत्र मधुर एवं कोमल प्रतीत होती है।

महादेवीजी ने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं से हिन्दी-साहित्य को जो गरिमा प्रदान की है, वह अतुलनीय है। मीरा के बाद वह अकेली ऐसी महिला रचनाकार हुई हैं, जिन्होंने साहित्य के क्षेत्र में इतनी ख्याति अर्जित की।


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