Sohanlal Dwivedi Ka Jeevan Parichay

(जीवनकाल सन् 1906 ई० से सन् 1988 ई०)

जीवन परिचय- सोहनलाल द्विवेदी का जन्म सन् 1906 ई० में फतेहपुर जनपद के बिन्दकी नामक कस्बे में एक सम्पन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता पण्डित वृन्दावनप्रसाद द्विवेदी एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे। घर के अच्छे वातावरण का इनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। हाईस्कूल तक की शिक्षा फतेहपुर में प्राप्त करने के पश्चात् ये उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय चले गये। यहाॅं से एम० ए०, एल-एल० बी० की उपाधियाॅं प्राप्त कीं। यहीं यशस्वी महामना मदनमोहन मालवीय के संसर्ग से इनमें राष्ट्रीय भावना के अंकुर जाग्रत हुए और ये राष्ट्रीय भावना पर आधारित कविताऍं लिखने लगे। साहित्य-प्रेम इन्हें जन्मजात रूप में मिला था। सन् 1938 ई० से सन् 1942 ई० तक ये लखनऊ से प्रकाशित दैनिक राष्ट्रीय पत्र 'अधिकार' के सम्पादक रहे। इस बीच पण्डित माखनलाल चतुर्वेदी की प्रेरणा से इनका साहित्य-सृजन और बढ़ गया। सन् 1941 ई० में इनका प्रथम काव्य-संग्रह 'भैरवी' प्रकाशित हुआ। कई वर्षों तक ये 'बालसखा' के अवैतनिक सम्पादक भी रहे। सन् 1970 ई० में भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री की उपाधि से विभूषित किया।

श्रेष्ठ बाल-साहित्य की रचना पर उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें  ₹50,000 का विशिष्ट पुरस्कार प्रदान किया। 29 फरवरी, सन् 1988 ई० को इनका स्वर्गवास हो गया।

रचनाऍं

सोहनलाल द्विवेदी की रचनाओं में इनकी राष्ट्रीय विचारधारा पूर्णत: परिलक्षित होती है। इनकी रचनाओं को कई वर्गों में इस प्रकार विभाजित किया जा सकता है-

  1. प्रेमगीत एवं आख्यानक काव्य- 'भैरवी', 'पूजागीत', 'बासन्ती', 'प्रभाती', 'चेतना', 'पूजा के स्वर', 'वासवदत्ता', 'कुणाल', 'विषपान' आदि।
  2. बाल-कविता-संग्रह- 'दूध-बताशा', 'शिशु-भारती', 'बाल-भारती', 'बिगुल', 'बाॅंसुरी और झरना', 'बच्चों के बापू', 'हॅंसो-हॅंसाओ' आदि।
  3. सम्पादन- 'गाॅंधी अभिनन्दन ग्रन्थ', 'अधिकार', 'बालसखा' आदि।

भाषा-शैली

द्विवेदी जी की भाषा शुद्ध, परिमार्जित खड़ी बोली है। भाषा में तत्सम शब्दों की अधिकता है, किन्तु इससे भाषा क्लिष्ट एवं बोझिल नहीं हुई है। सामान्य, प्रेरणादायक एवं उत्साहवर्ध्दक गीतों की भाषा सरल, सरस एवं व्यावहारिक है। भाषा को भावमय बनाने के लिए उर्दू के प्रचलित शब्दों एवं मुहावरों का भी प्रयोग किया गया है। आपने अनावश्यक काव्य-सौन्दर्य को पसन्द नहीं किया है।

इनकी शैली में प्रवाह, सजीवता और रोचकता है। इन्होंने गीति, प्रबन्ध तथा मुक्तक शैलियों का प्रयोग किया है। इतिवृत्तात्मकता और चित्रात्मकता भी इनकी शैली में पायी जाती है।

इस प्रकार छायावादोत्तर कवियों में सोहनलाल द्विवेदी की गणना श्रेष्ठ कवि के रूप में की जाती है। महामना मालवीय, माखनलाल चतुर्वेदी और गाॅंधीवादी विचारधारा का इन पर अमिट प्रभाव है। राष्ट्रीय कवियों और बाल-साहित्यकारों में द्विवेदी जी का प्रमुख स्थान है।

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