कवि केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय - Kedarnath Agrawal Biography in Hindi

(जीवनकाल सन् 1911 ई० से सन् 2000 ई०)

जीवन परिचय- आधुनिक काल के बहुचर्चित कवि केदारनाथ अग्रवाल का जन्म 1 अप्रैल, सन् 1911 ई० को बाॅंदा जनपद के कमासिन नामक ग्राम में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा ग्रामीण परिवेश में प्रारम्भ हुयी। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए ये इलाहाबाद चले गये और वहीं प्रयाग विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् कानपुर के डी० ए० वी० महाविद्यालय से, जो आगरा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध था, एल० एल० बी० की परीक्षा उत्तीर्ण कर अपने गृह जनपद बाॅंदा में वकालत का कार्य आरम्भ किया। कानून का अच्छा ज्ञान होने, उदार व्यवहार और मधुर वार्त्तालाप से शीघ्र ही ये अपने पेशे में लोकप्रिय हो गये।

साहित्य-साधना में ये प्रारम्भ से ही रुचि लेते थे। रीतिकालीन काव्य के रसिक अध्येता केदारनाथ अग्रवाल पहले बालेन्दु बी० ए० के नाम से काव्य-रचना करते थे। वकालत के समय से ही शोषित, पीड़ित के जननायक के रूप में प्रिय हुए। सर्वहारा वर्ग इनकी  कविता का केन्द्र-बिन्दु था। तत्कालीन प्रगतिवादी कवियों से प्रेरणा प्राप्त कर यह नागार्जुन आदि कवियों के साथ प्रगतिशील काव्य के प्रमुख हस्ताक्षर बने। दीन-दु:खियों के प्रति इनके हृदय में सच्ची सहानुभूति थी। कार्ल मार्क्स से ये बहुत प्रभावित थे। गाॅंव की सादगी और सच्चाई इनके व्यवहार, विचार और काव्य में स्पष्ट परिलक्षित होती है। 22 जून, सन् 2000 ई० को इनका स्वर्गवास हो गया।

रचनाऍं

केदारनाथ अग्रवाल की प्रमुख रचनाओं में 'जमुन जल तुम' (सन् 1932 ई० से 1976 ई० तक की कविताओं का संकलन), 'हे मेरी तुम', 'नींद के बादल', 'युग की गंगा' और 'लोक और आलोक' अत्यन्त लोकप्रिय हैं। अन्य रचनाओं में 'फूल नहीं रंग बोलते हैं', 'पंख और पतवार', 'हे मेरी तुम', 'मार प्यार की थापें', 'अपूर्वा', 'बोल बोल अबोल', 'अनहारी हरियाली', 'पुष्पदीप' एवं 'खुली ऑंखें खुले डैने' आदि प्रसिद्ध हैं।

अग्रवाल जी कविता को कविता के लिए नहीं मानवता के लिए मानते थे। इनकी अतिवादी (खरी बात कहनेवाली) रचनाओं में जहाॅं मानवता का मूल तत्त्व है, वहीं प्रगतिशील रचनाओं में बिम्ब-विधान एवं नवीन रूप-चित्रण श्रेष्ठ है। डॉ० रामविलास शर्मा के संसर्ग से इनकी कविता में व्यापकता और विविधता का समावेश हुआ।

डॉ० रामविलास शर्मा ने 'प्रगतिशील काव्यधारा और केदारनाथ अग्रवाल' में लिखा है,

"अगर कविता में धरती की गन्ध आ सकती है,

      तो वह गन्ध केदार बाबू की कविताओं में है।"

भाषा-शैली

केदारनाथ अग्रवाल की भाषा लोकभाषा है। इनकी कविता के शीर्षक एवं भाषा दोनों बिल्कुल सामान्य रहे हैं। इनकी रचनाऍं छन्दमुक्त हैं और काव्य-सौन्दर्य के तत्त्वों से बोझिल नहीं हैं। इनकी शैली गीति शैली है।

अग्रवाल जी को विभिन्न संस्थाओं; यथा साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से सम्मानित किया जा चुका है। इनका सम्पूर्ण जीवन त्यागमय रहा। मानवीय मूल्यों के संरक्षण में ये आजीवन लगे रहे। साहित्य-जगत् सदा इनका ऋणी रहेगा।


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