Narendra Sharma Ka Jivan Parichay

 (जीवनकाल सन् 1913 ई॰ से सन् 1989 ई॰)

जीवन परिचय- नरेन्द्र शर्मा का जन्म बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) जिले के जहाॅंगीरपुर नामक ग्राम में 28 फरवरी, सन्  1913 ई॰ में हुआ था। इनके पिता श्री पूरनलाल शर्मा एवं माता श्रीमती गंगादेवी थीं। जब ये 4 वर्ष के थे इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। इनकी प्राथमिक शिक्षा गाॅंव में हुई। इन्होंने हाईस्कूल सन् 1929 ई॰ में, इण्टरमीडिएट सन् 1931 ई॰ में किया तदुपरान्त सन् 1931 ई॰ से सन् 1936 ई॰ तक प्रयाग में अध्ययन करते हुए सन् 1936 ई॰ में एम॰ ए॰ की परीक्षा प्रयाग विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण की। सन् 1937 ई॰ में 'भारत' के सहकारी सम्पादक बनें। सन् 1938 ई॰ से सन् 1940 तक आन्दोलनों में भाग लेने के कारण जेल यातनाऍं सहन कीं। सन् 1940 ई॰ में काशी विद्यापीठ में अध्यापन कार्य किया तथा सन् 1943 ई॰ में फिल्मजगत में प्रवेश कर फिल्मी गीत लिखे। आपने आकाशवाणी में अवैतनिक कार्यक्रम नियोजक के रूप में कार्य किया। सन् 1966 ई॰ से आप मुम्बई केन्द्र में विविध भारती के चीफ-प्रोड्यूसर रहे तथा 11 फरवरी, सन् 1989 ई॰ को आपका स्वर्गवास हो गया।

कृतित्व एवं व्यक्तित्व

नरेन्द्र शर्मा जी की रचनाऍं इस प्रकार हैं-

  1. काव्य- शूलफूल, कर्णफूल, प्रवासी के गीत, पलाशवन, मिट्टी और फूल, हंसमाला, रक्तचन्दन, अग्निशस्य, कदलीवन, प्रभात फेरी, प्यासा निर्झर, बहुत रात रोये।
  2. खण्डकाव्य- द्रौपदी, उत्तर जय एवं सुवर्णा।

साहित्यिक योगदान

नरेन्द्र शर्मा का अतःकरण अत्यधिक भावुक था उनके गीत छायावादी युग से भिन्न हैं, उनमें श्रृंगारिकता, दार्शनिकता सजीवता, सुदृढ़ राष्ट्रीयता, लाक्षणिकता, चित्रोपमता तथा प्रतीकात्मकता विद्यमान है।

सामाजिक विषमता को देखकर कवि का हृदय क्रन्दन कर उठता है। आपकी भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है जिसमें सरसता एवं सरलता विद्यमान है। नाद-सौन्दर्य सहायक शब्द संरचना करके कवि विशेष शब्द सृष्टि करता है। उपमा रूपक आदि परम्परागत अलंकारों के साथ मानवीकरण अलंकार का पुष्ट प्रयोग आप के गीतों में मिलता है। छायावादोत्तर गीतकारों में नरेन्द्र जी का सम्मानीय स्थान है।

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