राय कृष्णदास का जीवन परिचय - Rai Krishna Das Biography In Hindi

 (जीवनकाल सन् 1892 ई० से सन् 1981 ई०)

राय कृष्णदास आधुनिक हिन्दी साहित्य में गद्य-गीत प्रवर्तक माने जाते हैैं। आपने अपने साहित्य में आत्मा तथा परमात्मा की मोहक प्रेम-क्रीड़ाओं का अद्वितीय चित्रण किया है। राय कृष्णदास अपने गद्य-काव्यों के क्षेत्र में पर्याप्त यश प्राप्त कर चुके हैं। आपके गद्य गीतों में पद्य की भाॅंति तुक तो नहीं, लेकिन लय और संगीत विद्यमान है। आत्मा और प्रकृति का सौन्दर्य आपके गद्य-गीतों में सर्वत्र बिखरा दिखाई देता है। ये गीत सरल, सुगम और आकार में छोटे हैं, तथा काव्य जटिलता से दूर हैं।

जीवन परिचय- राय कृष्णदास जी का जन्म काशी के प्रसिद्ध राय परिवार में सन् 1892 ई० में हुआ था। आपके पिता राय प्रहलाददास, राय भारतेन्दु जी के सम्बन्धी तथा काव्य-कला प्रेमी थे। आपका परिवार कला, संस्कृति और साहित्य और साहित्य प्रेम के लिए प्रसिद्ध था। इस प्रकार राय साहब को हिन्दी-प्रेम विरासत में प्राप्त हुआ। आप बचपन में जब 8 वर्ष के थे, तभी से कविता करने लगे। जब आप 12 वर्ष के थे तभी आपके पिता का स्वर्गवास हो गया, अतः आपकी स्कूली शिक्षा अधिक नहीं हो पायी। उत्कट ज्ञान लिप्सा होने के कारण आपने घर पर ही स्वाध्याय से संस्कृत, ॲंग्रेजी, हिन्दी तथा बाॅंग्ला का गहन ज्ञान प्राप्त कर लिया। आपकी साहित्यिक रुचि के विकास में काशी का वातावरण प्रेरक रहा। साहित्यिक गतिविधियों में रूचि होने के कारण आपकी घनिष्ठता, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, मैथिलीशरण गुप्त आदि प्रमुख कवियों तथा आलोचकों से हो गयी।

भारतीय कला-आन्दोलन में राय साहब का अप्रतिम स्थान है। आपने अपने ही व्यय से उच्चकोटि के 'कला-भवन' की स्थापना की, जो अब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का एक विभाग है। इस संग्रहालय की गणना संसार के प्रमुख संग्रहालयों में की जाती है। आपने प्राचीन भारतीय कला, इतिहास और संस्कृति को प्रकाश में लाने का भी महत्त्वपूर्ण कार्य किया। सन् 1981 ई० में इनका स्वर्गवास हो गया।

राय साहब ने परम्परागत ब्रजभाषा में कविताऍं लिखी जो 'ब्रजरज' में संग्रहीत हैं। आपके 'भावुक' नामक खड़ी बोली काव्य-संग्रह पर छायावाद का स्पष्ट प्रभाव है। आपके गद्यगीत साधना और छायापथ के नाम से प्रसिद्ध हैं। आप पुरातत्व के पण्डित तथा प्राचीन भारतीय कला एवं संस्कृति के मर्मज्ञ के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं। आपने भारतीय कलाओं का प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत किया। 'भारत की चित्रकला' तथा 'भारतीय-मूर्तिकला' आपके प्रामाणिक ग्रन्थ हैं। प्राचीन भारतीय भूगोल एवं पौराणिक-वंशावली पर आपने विद्वतापूर्वक शोध निबन्ध प्रस्तुत किए हैं।

इनके अतिरिक्त आपकी अन्य रचनाऍं इस प्रकार हैं-

रचनाऍं

  1. निबन्ध- संलाप, प्रवाल।
  2. कहानी- अनाख्या, सुधांशु और ऑंखों की थाह।
  3. अनुवाद- पगला- यह खलील जिब्रान के 'दि मैड मैन' का सुन्दर हिन्दी अनुवाद है।

भाषा-शैली

आपकी भाषा में न तो संस्कृत के तत्सम शब्दों का भरमार है और न बोलचाल के सामान्य शब्दों की उपेक्षा। आपकी भाषा में प्रवाह और सुबोधता के साथ काव्यात्मक माधुर्य है। बीच-बीच में आपने देशज तथा तद्भव शब्दों का भी प्रयोग किया है। आपकी भाषा सरल एवं सहज है, कहीं पर भी क्लिष्टता के दर्शन नहीं होते हैं। आपने अपने गद्य-गीतों में अलंकारों का सहज प्रयोग किया है, उसमें किसी भी प्रकार का बनावटीपन नहीं है। आपने मुहावरों का प्रयोग भी किया है, जिससे साहित्य में जीवन्तता आ गयी है। शब्द-चयन सटीक और वाक्य-विन्यास सुगठित है। आपकी भाषा कवित्वपूर्ण होते हुए भी सहज एवं सरल है।

राय कृष्णदास जी की शैली के मुख्य रूप इस प्रकार हैं-

  1. भावात्मक शैली- अनेक स्थानों पर राय कृष्णदास का मन भावुकता से भर उठता है, ऐसे क्षणों में आपकी शैली भावात्मक हो गयी है। भावात्मक शैली के आप सम्राट् माने जाते हैं, एक सहज माधुर्य, भावुकता एवं काव्यात्मक सौन्दर्य आपके काव्य में सर्वत्र दिखाई पड़ता है।
  2. गवेषणात्मक शैली- इस शैली का प्रयोग आपने प्राचीन भारतीय कला के इतिहास सम्बन्धी अपने मौलिक गवेषणात्मक ग्रन्थों में किया है।
  3. विवरणात्मक शैली- कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते समय आपने इस शैली का प्रयोग किया है। इसकी भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है तथा वाक्य छोटे-छोटे हैं।
  4. संवाद शैली- संलाप तथा प्रवाल के अधिकांश निबन्धों में आपने संवाद शैली का ही आश्रय लिया है। इनके संवाद अति भावपूर्ण, सशक्त और मार्मिक है। कोमल भावनाओं को सजीव शब्दों में प्रकट करना, आपकी गद्यशैली की विशेषता है। आपकी शैली का यह रूप गद्य-गीतों के सर्वथा उपयुक्त है।

राय कृष्णदास गद्य-गीत विधा के प्रवर्तक हैं। आप एक सफल गद्यगीतकार हैं। आधुनिक युग को गद्य का युग कहा जाता है, जिसकी विशेषता यह है कि गद्य ने अपनी शक्ति के द्वारा पद्य को भी आत्मसात् कर लिया है। वास्तव में गद्य एवं पद्य को पूर्णत: पृथक् नहीं किया जा सकता-इसका प्रमाण हमें आपके गीतों में मिलता है। आप वास्तव में हिन्दी के उच्चकोटि के गद्य गीतकार के रूप में याद किए जाएंगे।


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