Jainendra Kumar Ka Jivan Parichay

 (जीवनकाल सन् 1905 ई॰ से सन् 1988 ई॰)

आधुनिक हिन्दी जगत् में जैनेन्द्र कुमार का एक विशिष्ट स्थान है। आप प्रेमचन्दोत्तर युगीन श्रेष्ठ कथाकार के रूप में विख्यात हैं। आपने उपन्यास, कहानी, निबन्ध तथा संस्मरण आदि अनेक गद्यविधाओं को स्वलेखनी से समृद्ध किया है। आपके निबन्ध चिन्तन प्रधान एवं विचारात्मक हैं।

जीवन परिचय- जैनेन्द्र कुमार का जन्म अलीगढ़ जिले के कौड़ियागंज नामक कस्बे में सन् 1905 ई॰ में हुआ था। बचपन में ही आपके पिता का देहान्त हो गया और आपका पालन-पोषण माता तथा नाना ने किया। आनन्दीलाल मूल नाम को त्यागकर आपने अपना नाम जैनेन्द्र कुमार रख लिया। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा हस्तिनापुर के जैन गुरुकुल 'ऋषि ब्रह्मचर्याश्रम' में हुई थी। पंजाब से मैट्रिक उत्तीर्ण कर आपने काशी विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। सन् 1921 ई॰ के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण आपकी आगे की शिक्षा का क्रम टूट गया। स्वाध्याय से आपने हिन्दी का गहन ज्ञान प्राप्त किया। स्वतन्त्रता संग्राम आन्दोलन में भाग लेने के कारण आपको अनेक बार जेल यात्राएं करनी पड़ीं। आपने कुछ राजनीतिक पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। सन् 1928-1929 ई॰ से आपने साहित्य क्षेत्र में प्रवेश लिया। 24 दिसम्बर, सन् 1988 ई॰ को इस महान् साहित्यकार का स्वर्गवास हो गया।

आपकी प्रथम कहानी 'खेल' सन् 1928 ई॰ में विशाल-भारत में छपी थी। जीवनपर्यन्त साहित्य-साधना में संलग्न रहे। जैनेन्द्र जी ने हिन्दी साहित्य को अनुपम कृतियाॅं दी हैं। जैनेन्द्र जी की रचनाओं में हमें उनका दार्शनिक रूप दिखाई देता है। पात्रों के अन्तर्मन एवं बाह्य रूप की झाॅंकी हमें उनकी रचनाओं में मिलती है। जैनेन्द्र एक सजग विचारक हैं।

आपके प्रथम प्रकाशित उपन्यास 'परख' पर साहित्य अकादमी ने ₹500 का पुरस्कार प्रदान किया। आपका दृष्टिकोण मानवतावादी है। आपने साहित्य, कला, दर्शन, मनोविज्ञान, समाज, राष्ट्र आदि अनेक विषयों पर साहित्य सृजन किया।

जैनेन्द्र कुमार जी की प्रमुख कृतियाॅं इस प्रकार हैं-

  1. कहानी संग्रह- फाॅंसी, एक रात, स्पर्धा, पाजेब, वातायन, नीलम देश की राजकन्या, ध्रुवयात्रा, दो चिड़ियाॅं आदि। 'जैनेन्द्र की कहानियाॅं' नाम से 10 भागों में आपकी कहानियाॅं संग्रहीत हैं।
  2. उपन्यास- सुनीता, त्याग-पत्र, परख, कल्याणी, जयवर्द्धन,  विवर्त, सुखदा, मुक्तिबोध आदि आपके प्रसिद्ध उपन्यास हैं।
  3. निबन्ध संग्रह- प्रस्तुत प्रश्न, पूर्वोदय, जड़ की बात, साहित्य का श्रेय और प्रेम, मन्थन, गांधी-नीति, काम-प्रेम और परिवार आदि।
  4. संस्मरण- ये और वे।
  5. अनुवाद- मन्दाकिनी (नाटक), पाप और प्रकाश (नाटक), प्रेम में भगवान् (कहानी संग्रह)।

इस प्रकार कहानी, उपन्यास, निबन्ध आदि विधाओं को जैनेन्द्र कुमार ने सम्पन्न बनाया।

भाषा-शैली

जैनेन्द्र कुमार जी की भाषा की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह विषयानुकूल परिवर्तित होती रहती है। आपके निबन्धों की भाषा मूलतः चिन्तन की भाषा है। वे सोचा हुआ न लिखकर सोचते हुए लिखते हैं। अतएव आपके विचार कहीं-कहीं उलझ जाते हैं। व्याकरणिक दृष्टि से आपकी भाषा कहीं-कहीं अपरिमार्जित सी लगती है। शब्द-चयन में आपका दृष्टिकोण उदार है। आप सही बात को सही ढंग से उपयुक्त शब्दावली में कहना चाहते हैं। इसके लिए आपको चाहे अंग्रेजी, उर्दू या संस्कृत के तत्सम शब्दों का चयन करना पड़े, चाहे जन सामान्य की प्रचलित भाषा से शब्द ग्रहण करना पड़े, आपको कोई संकोच नहीं होता।

प्रमुख रूप से आपकी भाषा के दो रूप दिखाई देते हैं- भाषा का सरल, सुबोध रूप तथा संस्कृतनिष्ठ भाषा। मुहावरों और कहावतों का सजीव प्रयोग आपने अपनी रचनाओं में किया है। भाव को भली प्रकार से व्यक्त करने की क्षमता आपकी भाषा में सहज रूप से विद्यमान है।

जैनेन्द्र जी ने विषय में नवीनता लाने के लिए नवीन शैली के प्रयोग किए हैं। आपने हिन्दी को एक विशिष्ट प्रकार की नवीन शैली प्रदान की है, जिसमें रोचकता, नाटकीयता और गहन विचारात्मकता है।

आपकी शैली के निम्नलिखित रूप हैं-

  1. विचारप्रधान विवेचनात्मक शैली- यह रूप आपके निबन्धों में स्पष्ट परिलक्षित होता है। गम्भीर चिन्तन के फलस्वरुप इसमें कहीं-कहीं दुरूहता भी आ गयी है।
  2. मनोविश्लेषणात्मक शैली- कहानी और उपन्यास के पात्रों के अन्तर्द्वन्द्व और बहिर्द्वन्द्व की अनुभूतियों को स्पष्ट करने हेतु आप इस शैली का प्रयोग करते हैं। इसके द्वारा चेतन मन में निहित अचेतन का साक्षात्कार कराया गया है।
  3. व्यावहारिक शैली- यह जैनेन्द्रजी की कथा साहित्य की शैली है। वार्तालाप के माधुर्य और सहज व्यंग्य के कारण इसमें रोचकता आ गयी है। प्रसाद गुण आपकी इस शैली की विशेषता है। जैनेन्द्र जी की शैली अत्यन्त प्रौढ़ एवं प्रवाहपूर्ण है।

मनोविश्लेषणात्मक लेखन में जैनेन्द्र कुमार को साहित्य में विशेष स्थान प्राप्त है। मनोवैज्ञानिक उपन्यास एवं कहानी की आपने एक विशेष विधा प्रारम्भ की। आपके चिन्तन तथा नवीन शैली विधान ने हिन्दी साहित्य को नव दिशा प्रदान की है जिसके लिए आप चिरस्मरणीय रहेंगे।

Comments

Popular posts from this blog

Uday Shankar Bhatt Ka Jeevan Parichay

Acharya Mahavir Prasad Dwivedi Jeevan Parichay

Seth Govind Das Ka Jeevan Parichay