Bhawani Prasad Mishra Ka Jeevan Parichay

(जीवनकाल सन् 1914 ई॰ से सन् 1985 ई॰)

जीवन परिचय- पण्डित भवानीप्रसाद मिश्र का जन्म 23 मार्च, सन् 1914 ई॰ में सिवनी, मालवा तहसील की सीमा से लगे हुए, रेवा तट पर बसे टिगरिया नामक ग्राम जिला होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) में हुआ था। इनके पिता श्री सीताराम मिश्र एवं माता श्रीमती गोमती देवी थीं। मिश्र जी का बचपन खण्डवा, बैतूल एवं सुहागपुर आदि में बीता था। आपने बी॰ ए॰ की परीक्षा जबलपुर के ऐबर्टसन कॉलेज से उत्तीर्ण की। सन् 1942 ई॰ मे स्वाधीनता में सक्रिय भाग लेने के परिणामस्वरूप आपको 3 वर्ष तक कारागार-यातना सहन करनी पड़ी। मिश्र जी ने वर्धा महिला आश्रम में कुछ समय तक अध्यापन कार्य किया। पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया, चित्रपट गीत लिखे, आकाशवाणी बम्बई केन्द्र में हिन्दी विभाग के प्रधान पद पर कार्य किया। इसके बाद 'सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय' का सम्पादन किया। 20 फरवरी, सन् 1985 ई॰ को इनका स्वर्गवास हो गया।

कृतित्व एवं व्यक्तित्व-

आपकी प्रमुख रचनाऍं इस प्रकार हैं-

तारसप्तक में संकलित कविताऍं, गीतफरोश, चकित है दुःख, ॲंधेरी कविताऍं, बुनी हुई रस्सी, गाॅंधी पंचशती। अनाम तुम अति हो, त्रिकाल संध्या, परिवर्तन जिये, मानसरोवर दिन, कालजयी आदि।
श्री भवानीप्रसाद मिश्र गांधीवादी विचारधारा के चिन्तनशील कवि थे।

साहित्यिक योगदान

वैयक्तिक्ता के आधार पर मिश्र जी ने अपने आसपास की हलचलों को सामाजिक उत्तरदायित्व की दृष्टि से बड़े प्रभावपूर्ण रूप में तथा नितान्त सहज और बोलचाल की भाषा शैली में व्यक्त कर कविता को आत्मीय वार्तालाप एवं आत्मानुभव कथन के रूप में प्रतिष्ठित किया है। जीवन में जो कुछ स्वस्थ है, मंगलदायक है, आह्लादकारी है उसे उभारने एवं प्रचारित-प्रसारित करने के लिये ही इन्होंने काव्य को साधन बनाया है। 'गीत-फरोश' नामक प्रसिद्ध रचना में इन्होंने कवि सम्मेलनों एवं सर्वज्ञ बनने का दावा करने वाले, रचनाकारों पर परोक्षतः प्रहार किया है। आधुनिक जीवन की यांत्रिकता और ऊब को प्राकृतिक एवं मानवीय सौन्दर्य एवं गरिमा से मुक्ति प्राप्त कर सम्पन किया जा सकता है, यह विश्वास इनकी रचनाओं में मुखर हुआ है।

भाषा-शैली

मिश्र जी की भाषा में विशेष सादगी एवं ताजगी है। आपकी भाषा में सजीवता है तथा भावाभिव्यक्ति की अपूर्व सामर्थ्य है। लोकोक्ति एवं मुहावरों से आपकी भाषा की जीवन शक्ति बढ़ी है, अलंकार प्रयोग से आपकी रचनाओं में अति प्रभावशीलता आई है। प्रतीकों का प्रयोग भी आपके काव्य में मिलता है। सजीवता, स्वाभाविकता, चिन्तनशीलता, विचारप्रधानता आपकी रचनाओं के विशेष गुण कहे जा सकते हैं।

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