Gajanan Madhav Muktibodh Ka Jeevan Parichay
(जीवनकाल सन् 1917 ई॰ से सन् 1964 ई॰)
जीवन परिचय- गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म 13 नवम्बर, सन् 1917 ई॰ को श्योपुर, जिला मुरैना (मध्य प्रदेश) में हुआ था। मुक्तिबोध के पिता का नाम माधवराव एवं माता का नाम पार्वतीबाई था। इन्दौर के होल्कर कॉलेज से बी॰ ए॰ की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा उज्जैन के मॉडर्न स्कूल में अध्यापक हो गये। सन् 1954 ई॰ में एम॰ ए॰ की परीक्षा उत्तीर्ण करके राजनाॅद गाॅंव के दिग्विजय कॉलेज में प्राध्यापक नियुक्त हुए। कामवाली की पुत्री शान्ताबाई से विवाह किया। 'हंस' का सम्पादन भी किया। मुक्तिबोध का जीवन अभाव-संघर्ष एवं आर्थिक-विपन्नता में कटा तथा सितम्बर सन् 1964 ई॰ में इनका स्वर्गवास हो गया।
चालाक बुद्धिजीवियों की स्वार्थपरता पर गहरी चोट करने वाले मुक्तिबोध प्रायः अस्पष्ट हो गये हैं। सुविधाप्रिय जीवन-पद्धति पर तीखा प्रहार करते हुए मुक्तिबोध ने अपनी सामाजिक भावना को प्रकट किया है। छायावादी लिजलिजेपन और प्रगतिवादी थोथे नारों और हुल्लड़बाजी के प्रति असहमति प्रकट करते हुए मुक्तिबोध ने शोषण और भेड़चाल का बड़ा सशक्त विरोध अपनी रचनाओं के माध्यम से किया है।
कृतित्व एवं व्यक्तित्व
मुक्तिबोध की प्रमुख रचनाऍं इस प्रकार हैं-
काव्य- चाॅंद का मुॅंह टेढ़ा है।
तारसप्तक में प्रकाशित कविताऍं।
कहानी संग्रह- काठ का सपना।
उपन्यास- विपात्र।
आख्यान- एक-साहित्यिक की डायरी।
निबन्ध- नयी कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबन्ध, कामायनी एक पुनर्विचार।
पुस्तक समीक्षाऍं- उर्वशी दर्शन और काव्य।
साहित्यिक योगदान
मुक्तिबोध की भाषा अनगढ़ है जिसमें संस्कृत के अतिरिक्त अरबी, फारसी तथा ॲंग्रेजी के शब्दों की भरमार है। वारदात, वाकई तजुर्बा, वक्त, मुफलिसी, फिक्र आदि उर्दू शब्द, ड्रेस, टावर, फ्यूज, मार्शल, कर्नल, बल्ब, प्रोसेशन, गैस लाइट, फ्रेम, रिवाल्वर ड्राअर आदि ॲंग्रेजी, खट्खटाक्-खट्, तड़-तड़ातड़-तड़, सटर-पटर, धड़मधूम, छपाछप, भबभड़, दलिद्दर, टण्टा, धूलधक्कड़ आदि देशज निर्मित शब्द जो शब्द ध्वनि, गतिशीलता एवं वातावरण एवं विशिष्ट मानसिकता व्यक्त करने में पर्याप्त समर्थ हैं। शब्द तराश कर उसकी अर्थवत्ता एवं आत्मा को समझकर प्रयोग करते हैं। कवि ने शब्दों एवं मुहावरों को नई अर्थवत्ता प्रदान की है। उनके शब्दों के अर्थ के भीतर अर्थ हैं।
फैंटेसी मुक्तिबोध को अति प्रिय है तथा यही उनका समर्थ शिल्प पैटर्न है। कवि की फैण्टेसी भीतरी बाहरी द्वन्द्वों एवं आघातों का परिणाम है, जीवन ज्ञान अति सूक्ष्म रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्रतीक एवं बिम्बों का प्रयोग भी कवि ने किया है। मुक्तिबोध के 'क्लासिक रचना शिल्प' को समझने के लिये एक 'खास समझ' विकसित होनी चाहिए।
मुक्तिबोध का कवि व्यक्तित्व हो, सृजन क्रिया हो अथवा समीक्षा पद्धति-इन तीनों की एकतानता नयी कविता में मुक्तिबोध के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं दिखलाई नहीं देती। उन्होंने साहित्य एवं युग को नया सौन्दर्य शास्त्र दिया है। मुक्तिबोध अनास्था से आस्था की ओर बढ़ते हैं।
इस प्रकार साहित्य साधक मुक्तिबोध का काव्य जन को जन-जन और मन को मानवीय बनाने की सार्थक चेष्टा है लेकिन उनके काव्य आम आदमी तक पहुॅंचने के लिये बुद्धिजीवी-आश्रय ढूॅंढना पड़ेगा। उन्होंने प्रत्येक वाणी में महाकाव्य पीड़ा को सुना है।
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