प्रताप नारायण मिश्र का जीवन परिचय - Pratap Narayan Mishra Biography In Hindi

                   

(जीवनकाल सन् 1856 ई॰ से सन् 1894 ई॰)

आधुनिक हिन्दी-निर्माताओं की बृहत्त्रयी में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बालकृष्ण भट्ट और प्रतापनारायण मिश्र की गणना होती है। मिश्रजी को यद्यपि न तो भारतेन्दु जैसे साधन मिले थे ओर न ही भट्टजी जैसी लम्बी आयु, फिर भी मिश्रजी ने अपनी प्रतिभा और लगन से उस युग में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया था।

जीवन परिचय - पं॰ प्रतापनारायण मिश्र का जन्म सन् 1856 ई॰ में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बैजेगाॅंव में हुआ था। मिश्रजी के जन्म के कुछ दिनों बाद ही इनके ज्योतिषी पिता पं॰ संकटाप्रसाद मिश्र कानपुर आकर सपरिवार रहने लगे। यहीं पर इनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। पिता इन्हें ज्योतिष पढ़ाकर अपने पैतृक व्यवसाय में ही लगाना चाहते थे, परन्तु इनका मनमौजी स्वभाव उसमें नहीं रमा। इन्होंने कुछ समय तक अंग्रेजी स्कूल में भी शिक्षा प्राप्त की, किन्तु कोई भी अनुशासन  और निष्ठा का कार्य, जिसमें विषय की नीरसता के साथ प्रतिबन्धता भी आवश्यक होती, इनके मौजी और फक्कड़ स्वभाव के विपरीत था; अतः ये यहाॅं भी पढ़ न सके। घर में स्वाध्याय से ही इन्होंने संस्कृत, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी और बाॅंग्ला पर अच्छा अधिकार प्राप्त कर लिया।

मिश्रजी के साहित्यिक जीवन का प्रारम्भ बड़ा ही दिलचस्प रहा। कानपुर उन दिनों लावनीबाजों का केन्द्र था और मिश्रजी को लावनी अत्यन्त प्रिय थी। लावनीबाजों के सम्पर्क में आकर इन्होंने लावनियाॅं और ख्याल लिखना आरम्भ किया। यहीं से इनके कवि और लेखक-जीवन का प्रारम्भ हुआ।

मिश्रजी साहित्यकार होने के साथ-ही-साथ-साथ सामाजिक जीवन से भी जुड़े थे। सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक संस्थाओं से इनका निकट का सम्पर्क था और देश में जो नवजागरण की लहर आ रही थी, उसके प्रति ये सचेत थे। वास्तव में नवजागरण का सन्देश ही जन-जीवन तक पहुॅंचाने के लिये इन्होंने साहित्य-सेवा का व्रत लिया और ब्राह्मण पत्रिका का आजीवन सम्पादन करते रहे।

मिश्रजी विपुल प्रतिभा और विविध रुचियों के धनी थे। कानपुर में इन्होंने 'नाटक सभा' नाम की एक संस्था बनायी थी। उसके माध्यम से ये पारसी थियेटर के समानान्तर हिन्दी का अपना रंगमंच खड़ा करना चाहते थे। ये स्वयं भी भारतेन्दु की भाॅंति कुशल अभिनय करते थे।

मिश्रजी भारतेन्दु के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थे तथा उन्हें अपना गुरु और आदर्श मानते थे। ये वाग्वैदग्ध्य के धनी थे और अपनी हाजिरजवाबी एवं विनोदी स्वभाव के लिये प्रसिद्ध थे।

हिन्दी के खड़ीबोली गद्य के निर्माताओं में मिश्रजी का प्रमुख स्थान है। इन्होंने गम्भीर और साधारण दोनों प्रकार के विषयों पर सुन्दर निबन्ध लिखे हैं। 'बात', 'बुढ़ापा', 'दाॅंत', 'भौं', 'रिश्वत', 'मुच्छ', 'धोखा', 'बन्दरों की सभा' आदि साधारण विषयों के अतिरिक्त इन्होंने प्रचलित कहावतों पर भी निबन्ध लिखने हैं; जैसे- 'मरे को मारे शाहमदार' तथा 'समझदार की मौत'। इसके अतिरिक्त मिश्री ने सामाजिक, राजनैतिक और साहित्यिक विषयों पर भी विचारपूर्ण गम्भीर निबन्ध लिखे हैं। इनके निबन्धों में हास्य और व्यंग्य का अच्छा पुट रहता है, जिसके कारण निबन्धों में चुटीलापन और जिन्दादिली सर्वत्र दिखायी देती है। पं॰ प्रतापनारायण मिश्र जी का स्वर्गवास सन् 1894 ई॰ में 38 वर्ष की अल्पायु में कानपुर में हो गया।

इनकी शैली हास्य-विनोद से ओत-प्रोत है और भाषा प्रवाहयुक्त, मुहावरेदार तथा सुबोध है। इन ऊनी निबंधों की अतिरिक्त सुंदर नाटक भी लिखी हैं जिसमें हठी हमीर कली को तक और भारत दुर्दशा विशेष प्रसिद्ध है। संगीत शकुंतल लावनीयो मे लिखा गया उनका पद नाटक है। यही अच्छे कवि भी थे। इन की कविताओं का संग्रह प्रताप लहरी कानपुर से प्रकाशित हो चुका है। इनके द्वारा लिखी पुस्तकों की संख्या 50 से भी अधिक है। नागरी प्रचारिणी सभा काशी ने इनकी सभी रचनाओं का संग्रह प्रताप नारायण मिश्र ग्रंथावली नाम से प्रकाशित किया है।

संकलित पाठ मिश्रजी की हास्य-व्यंग्यप्रधान शैली, जो इनकी प्रतिनिधि शैली कही जाती है, के अन्तर्गत आनेवाले प्रसिद्ध निबन्धों में से एक है। यह एक ललित निबन्ध है। इसमें लेखक ने बात के सम्बन्ध में सभी ज्ञातव्य बातों का सहज समावेश किया है। लेखक की स्वच्छन्द कल्पना और शैली की रोचकता का समन्वित आकर्षण इस लेख की विशेषता है। इसका उद्देश्य भारत के गौरवपूर्ण अतीत का स्मरण कराते हुए भारतीयों को अपने वचनपालन के लिये कटिबद्ध होने के लिये प्रेरित करना है।

पं॰ प्रतापनारायण मिश्र की प्रमुख रचनाऍं इस प्रकार हैं-

(1) निबन्ध-संग्रह- 'प्रताप पीयूष', 'निबन्ध-नवनीत', 'प्रताप समीक्षा'।
(2) नाटक- 'कलि प्रभाव', 'हठी हम्मीर', 'गौ-संकट'।
(3) रूपक- 'कलि-कौतुक', 'भारत-दुर्दशा'।
(4) प्रहसन- 'ज्वारी-खुआरी', 'समझदार की मौत'।
(5) काव्य- 'मन की लहर', 'श्रृंगार-विलास', 'लोकोक्ति-शतक', 'प्रेम-पुष्पावली', 'दंगल खण्ड', 'तृप्यन्ताम्', 'ब्रैडला-स्वागत', 'मानस-विनोद', 'शैव-सर्वस्व', 'प्रताप-लहरी'।
(6) संकलन- 'प्रताप-संग्रह', 'रसखान शतक'।
(7) सम्पादन- 'ब्राह्मण', 'हिन्दुस्तान'।
(8) अनुवाद- 'चरिताष्टक', 'पंचामृत', 'राजसिंह', 'राधारानी', 'नीति रत्नावली', 'कथामाला', 'संगीत शाकुन्तल', 'अमर सिंह', 'इन्दिरा', 'देवी चौधरानी', 'त्रिपुरा का इतिहास', 'सेन राजवंश', 'सूबे बंगाल का इतिहास'।

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